प्रयागराज; संगम नागरी में आयोजित हो रहे महाकुंभ को दिव्य व भव्य बनाने की तैयारी जोरों से की जा रही है. इस आयोजन को लेकर देश-विदेश के लोगों में उत्साह व जिज्ञासा है. सभी श्रद्धालु इस पल के साक्षी बनाना चाहता है. इन सबके बीच आस्था के इस महाकुंभ की जो सबसे अहम कड़ी है वह है यहां आने वाले ‘कल्पवासी’. प्रति वर्ष की तरह इस बार भी माघ महीने में कल्पवासियों की आस्था से यह महाकुंभ दिव्य होने वाला है.
उल्लेखनीय है कि पौष पूर्णिमा से शुरू होने वाले कल्पवास में अभी से कल्पवासियों का आना प्रारंभ हो गया है. जिला रायबरेली से आये दिनेश पांडे बीते कई वर्षों से कल्पवास कर रहे हैं, दिनेश पांडे का कहना है कि उन सबके लिए कल्पवास अलौकिक अनुभव देने वाला होता है. वहीं, अंबुज व रविकांत का कहना है कि कड़ाके की ठंड व सुविधाओं का टोटा इसमें कोई मायने नहीं रखता है. उन्होंने कहा कि इन बार की व्यवस्था वाकई दिव्य है, सभी सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हो रहीं है. साथ ही उन्होंने कहा कि भीड़ होने के चलते वह लोग कल्पवास शुरू होने के छह दिन पहले ही आ गए है.
कल्पवासियों के लिए क्या होती है टेंट की व्यवस्था
बता दें कि कल्पवासियों के टेंट की व्यवस्था मेला प्रशासन नहीं करता है. टेंट कुछ संस्थाएं बनाती हैं, जिन्हें मेला प्रशासन मामूली दर पर जमीन उपलब्ध कराता है. जहां पर संस्थाएं अपने कल्पवासियों के शिविर लगवाती हैं. प्रयागराज के ओमप्रकाश के अनुसार टेंट से लेकर जरूरत की सारी सुविधाओं के दाम 30 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा दिए गए हैं. लेकिन फिर भी उनका उत्साह कम नहीं पड़ा है. कल्पवासी तीर्थ पुरोहितों के ही शिविरों में प्रवास करते हैं.
जानिए क्या है कल्पवास
संगम की रेती पर माघ के पूरे महीने निवास कर पुण्य फल प्राप्त करने की साधना को ही कल्पवास कहा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि, तीन रात्रि, तीन महीना, छह महीना, छह वर्ष, 12 वर्ष या जीवनभर भी कल्पवास किया जा सकता है. ऐसा माना जाता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश होने के साथ एक मास के कल्पवास से इच्छित फल की प्राप्ति होती है. जन्म जन्मांतर के बंधनों से भी मुक्ति मिलती है. ऐसा मानना है कि एक कल्पवास का फल उतना ही है, जितना सौ साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करने का. महाकुंभ में लाखों साधु-संतों के साथ आम लोग भी कल्पवास करते हैं.
क्या होती है कल्पवास की दिनचर्या
कल्पवास की दिनचर्या बेहद कठिन होती है इसमें श्रद्धालु एक बार भोजन करते हैं और तीन बार स्नान. सुबह गंगा स्नान कर पूजा-अर्चना से दिनचर्या शुरू होती है. शास्त्रों के अनुसार, कल्पवासी को दिन में तीन बार गंगा स्नान करना चाहिए. एक बार भोजन व एक बार फलाहार लेना चाहिए. खाने-पीने में अरहर की दाल, लहसुन और प्याज जैसी चीजें वर्जित हैं.