भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐसे गुमनाम नायक रहे हैं जिनके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है. राष्ट्रवीर के 7वें एपिसोड में हम आप को एक ऐसे ही गुमनाम क्रांतिकारी के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, जिसके बारे में इतिहास में उतना नहीं लिखा गया..जितने के वह हकदार थे. हम बात कर रहे हैं महापराक्रमी वीर नायक गंगू मेहतर की, जिन्हें गंगू पहलवान और गंगू बाबा और गंगादीन मेहतर आदि कई नामों से जाना जाता है. गंगू मेहतर ने 1857 के स्वाधीनता संग्राम में अकेले ही 200 ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराया था. आज भले ही उनका योगदान भुला दिया गया हो, लेकिन उनका साहस और उनकी वीरता देशवासियों को हमेशा प्रेरणा देती रहेगी.
गंगू मेहतर का जीवन
गंगू मेहतर का जन्म कानपुर के अकबरपुरा गांव में हुआ था, बाद में उनका परिवार कानपुर के चुन्नीगंज इलाके में आकर बस गया. गंगू को पहलवानी का शौक था, उन्होंने अपने इस शौक को कानपुर के सती चौरा गांव में पूरा किया. देखते ही देखते वे एक निपुण पहलवान बन गए और उन्हें ‘गंगू पहलवान’ के नाम से पुकारा जाने लगा. इसके बाद वह भिठूर के शासक नाना साहब पेशवा की सेना में शामिल हुए, पहले उनका काम सेना में नगाड़ा बजाना था. लेकिन उनके साहस और वीरता को देखते हुए नाना साहब ने पहले उन्हें सैनिक बनाया फिर सूबेदार के पद नवाजा.
1857 के संग्राम में 200 फिरंगियों को मार डाला
1857 में देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू हो चुका था. कानपुर भी इसका केंद्र बना. मराठा साम्राज्य के अंतिम पेशवा बाजीराव कानपुर के बिठूर आकर बस गए उन्होंने नाना साहब को गोद ले लिया. मेरठ के बाद कानपुर में भी विद्रोह की ज्वाला भड़कने से अंग्रेज घबरा गए और उन्होंने कानपुर छोड़ने का निर्णय लिया. कानपुर छोड़ने के लिए 14 मई 1857 को सैकड़ो अंग्रेज अधिकारियों और उनके परिजन सत्ती चौरा घाट पर इकट्ठा हुए. सहमति बनी कि अंग्रेज कानपुर से चले जाएंगे.
जिसको देखते हुए हजारों की संख्या में लोग भी वहां इकट्ठा हो गए. तात्या टोपे, बाजीराव और अजीजमल वहीं मौजूद थे, जबकि नाना राव पेशवा 2 किलोमीटर की दूरी पर थे. लेकिन छलपूर्वक अंग्रेजों ने गोलियां चलानी शुरु कर दीं. जिसमे कई क्रांतिकारियों की जान चली गई. जिसके बाद क्रांति की ज्वाला और तेज हो गई. भड़के क्रांतिकारियों ने कई अंग्रेजों को घाट पर ही मार डाला गया.
बाजीराव का निधन होने के बाद अंग्रेजों ने नाना साहब को उनका उत्तराधिकारी नहीं माना. जिस पर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया. इस बीच 1857 की लड़ाई में लड़ते हुए गंगू मेहतर ने 200 अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया. इस घटना से अंग्रेजी सरकार डर से थर्रा उठी. अंग्रेजों ने गंगू मेहतर को गिरफ्तार करने के आदेश दिए. जाल बिछाकर अंग्रेजों ने गंगू मेहतर को पकड़ने लिया.
8 सितंबर 1859 को दी गई फांसी
अंग्रेजों ने उन्हें घोड़े से बांधकर पूरे शहर में घुमाया और फिर जेल में डाल दिया. साथ ही विभिन्न प्रकार की यातनाएं दीं. अंततः 8 सितंबर 1859 को कानपुर में गंगू मेहतर को फांसी पर लटका दिया गया. हालांकि वह आज भी अपने साहस और वीरता के कारण याद किए जाते हैं. फांसी के फंदे से पहले गंगू ने ब्रिटिश हुकूमत को ललकारते हुए कहा था कि भारत की माटी में हमारे पूर्वजों का खून व कुर्बानी की गंध है. एक दिन यह देश स्वतंत्र होगा. उनकी भविष्यवाणी सच साबित हुई. 15 अगस्त सन 1947 को हमारा देश आजाद हो गया.
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हमेशा याद रहेगा संघर्ष
दुर्भाग्यवश, गंगू मेहतर का नाम भारतीय इतिहास में उतना महत्वपूर्ण स्थान नहीं पा सका, जितना उन्हें मिलना चाहिए था. इतिहास के पन्नों से कई वीरों को गायब कर दिया गया. गंगू मेहतर जैसे नायकों का नाम ना तो पाठ्यक्रमों में था और न ही उनकी वीरता को उचित सम्मान मिला. लेकिन आपको उनके संघर्षों के बारे में जानकारी मिले, इसलिए हमने अपनी जिम्मेदारी निभाई. उनका संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न हिस्सा था, जो हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेगा.