भारत का इतिहास वीरता और बलिदान की अनेक गाथाओं से भरा हुआ है. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मां भारती की बेटियों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इन वीर बालिकाओं का योगदान गुमनामी के अंधेरे में खो गया, लेकिन उनका साहस और बलिदान आज भी हम सबको प्रेरणा देता है. स्वतंत्रता संग्राम में ऐसी ही एक अद्वितीय वीरांगना थीं, जिनकी कहानी आज भी हमारे दिलों में जीवित है…वह थीं मैना कुमारी… मैना कुमारी महान क्रांतिकारी नाना साहब पेशवा की दत्तक पुत्री थीं.
1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जब अंग्रेजों के खिलाफ पूरे देश में बगावत का आगाज हुआ. इस बगावत के अगुआकारों में एक कानपुर के प्रसिद्ध क्रांतिकारी नाना साहब पेशवा भी थे. उन्होंने कानपुर व आसपास के जिलों में अंग्रेजों के खिलाफ हुई बगावत का नेतृत्व किया. जिसमें उनकी 13 वर्षीय बेटी मैना कुमारी का भी बड़ा योगदान रहा. उन्होंने न सिर्फ 13 वर्ष की आयु में अंग्रेजों से युद्ध लड़ा बल्कि क्रांतिकारियों की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति तक दे दी.