नई दिल्ली; सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (7 नवंबर) को एक अहम फैसला सुनाया है. शीर्ष अदालत ने उन सभी 93 याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें चर्च की नन और पादरियों के वेतन पर लगने वाले टैक्स में छूट देने की मांग की गई थी. कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि टैक्स के नियम सबके लिए समान होते हैं और इसमें कोई विशेष छूट नहीं दी जा सकती.
यह याचिकाकर्ताओं ने मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाली थी, जिसमें नन और पादरियों को मिलने वाले वेतन पर डिडक्शन एट सोर्स (TDS) लगाने की अनिवार्यता को सही बताया था. सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए, कराधान के मामलों में कानूनी समानता की बात कही.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की. बेंच में सीजेआई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे. याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने कोर्ट के समझ दलील दी कि नन और पादरी जो वेतन मिलता है, वह उसे कॉन्वेंट संस्थाओं को सौंप देते हैं. इसलिये यह उनकी पर्सनल सैलरी नहीं मानी जानी चाहिए.
इस पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इन लोगों को सैलरी उनके पर्सनल बैंक अकाउंट में भेजी जाती है. इसलिए वह कोई धार्मिक जीवन जी रहे हों या नहीं, टैक्स के नियमों के तहत उन्हें सैलरी पर टैक्स देना पड़ेगा. चीफ जस्टिस ने कहा कि यदि कोई हिंदू पुजारी कहे कि मैं अपनी सैलरी किसी संगठन को दूंगा, तो यह उसकी मर्जी है. लकिन फिर भी उसे टैक्स देना ही होगा. कानून सभी के लिए एक है.
यह भी पढ़ें; ‘अभी अधर में है AMU की पहचान…’, सुप्रीम कोर्ट की नियमित बेंच तय करेगी दर्जा
याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि केरल हाईकोर्ट ने कई निर्णयों में यह बात कही है कि मोटर व्हीकल एक्ट के तहत मिलने वाले मुआवजे में नन और पादरियों के परिजनों का अधिकारी नहीं है. इस पर सीजेआई ने कहा कि क्योंकि नन और पादरी गृहस्थ जीवन को छोड़कर सन्यासी हो जाते हैं, इसलिए उनके परिजनों का मुआवजे पर अधिकार नहीं है. लेकिन टैक्स का मामला बिल्कुल अलग है.