नई दिल्ली; सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इनकार करने वाले अपने 1967 के फैसले को खारिज कर दिया है. पहले के फैसले में कहा गया था कि AMU को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं मिल सकता, क्योंकि इसे एक कानून द्वारा स्थापित किया गया था. जबकि आज शुक्रवार को मामले पर सुनवाई करते हुए संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 4 जजों के बहुमत से निर्णय सुनाया.
उन्होंने कहा ‘AMU का अल्पसंख्यक दर्जा केवल इसलिए नहीं रद्द किया जा सकता कि संस्था का निर्माण कानून द्वारा किया गया था’. AMU अल्पसंख्यक दावे का निर्णय इस आधार पर किया जाएगा कि इसे किसने स्थापित किया, जबकि संविधान पीठ के जज जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और एससी शर्मा ने असहमति जताई. जस्टिस दीपांकर दत्ता ने अपने असहमति पूर्ण निर्णय में कहा की कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है.
संविधान पीठ द्वारा 4:3 के बहुमत से दिए गए इस निर्णय में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2006 के आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के सवाल को खारिज किया गया था. अब AMU के अल्पसंख्यक दर्जे का मामला सुप्रीम कोर्ट की एक नियमित बेंच द्वारा तय किया जाएगा, जो यह तय करेगी कि क्या यह विश्वविद्यालय किसी अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित किया गया था या नहीं. इस पीठ का गठन सुप्रीम कोर्ट के नए चीफ जस्टिस करेंगे.
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आज अपने फैसले में चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने यह भी स्पष्ट किया कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का निर्णय वर्तमान कानूनी परीक्षणों के आधार पर किया जाना चाहिए. इसके अलावा, 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की सत्यता भी इस मामले में महत्वपूर्ण होगी और इसे भी ध्यान में रखा जाएगा.