फतेहपुर; जिले में 52 क्रांतिकारियों को इमली के पेड़ पर एक साथ फांसी की सजा देना, एशिया की पहली ऐसी घटना है, जिसे अंग्रेजों ने अंजाम दिया था. ब्रिटिश हुकूमत द्वारा किया गया यह एक सामूहिक नरसंहार था, जिसे फिरंगियों ने फांसी का नाम दिया था. अंग्रेजों के भय से क्रांतिकारियों के शवों को कोई उतारने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. करीब एक महीने तक शव इमली के पेड़ पर ही लटकते रहे. जब यह जानकारी जोधा सिंह के करीबी महाराज सिंह को मिली, तो उन्होंने 3 और 4 जून की रात सभी शव जो तब कंकाल में तब्दील हो चुके थे उन्हें पेड़ से उतार कर कानपुर स्थित शिवराजपुर घाट पर अंतिम संस्कार किया.
जोधा सिंह और उनके साथियों जैसे अनेक क्रांतिकारियों के प्रयासों के चलते हमारा भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया. जिसके बाद सरकार ने ऐतिहासिक ‘बावन इमली’ पेड़ का संरक्षण करते हुए वहां एक स्मारक का निर्माण करवाया है. इमली के पेड़ के नीचे 52 स्तंभ बनाए गए हैं. जो जोधा सिंह अटैया और उनके साथियों के बलिदान का प्रतीक हैं. साथ ही परिसर में क्रांतिकारी जोधा सिंह की एक मूर्ति भी बनाई गई है. इसके अलावा एक पत्थर पर सभी 52 क्रांतिकारियों के नाम और पता का भी उल्लेख किया गया है.