वाराणसी: आज देशभर में शारदीय नवरात्रि के समापन के साथ दशमी तिथि को विजयादशमी के रूप में मनाया जा रहा है. यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. दशहरे के अवसर पर रावण का दहन करने की परंपरा है और इस दिन शस्त्रों की पूजा भी की जाती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, विजयादशमी पर शस्त्रों की पूजा का विधान है, जिसमें घरों और सैन्य ठिकानों पर शस्त्रों का पूजन किया जाता है. शिव पुराण के अनुसार, धनुष और त्रिशूल का निर्माण स्वयं भगवान शिव ने किया था. वहीं, प्रभु श्री राम ने भी नवरात्रि के दौरान 9 दिनों तक देवी की पूजा की और दसवें दिन शस्त्र पूजा कर रावण का वध किया था.
काशी विश्वनाथ धाम में इस बार शक्ति उपासना के पर्व नवरात्रि को विशेष धूमधाम से मनाया गया और दशहरे के दिन शस्त्र पूजा का आयोजन किया गया. काशी विश्वनाथ धाम में शाम को पारंपरिक शस्त्रों का प्रदर्शन भी किया जाएगा, जिसमें लाठी, भाला, त्रिशूल और तलवार शामिल होंगे.
आज मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्वभूषण मिश्र की अगुवाई में विद्वान ब्राह्मणों की उपस्थिति में शैव शस्त्रों की पूजा की गई. इस अवसर पर शस्त्रों की पूजा अर्चना के बाद उपस्थित लोगों ने महादेव से भारत की अखंडता और सुरक्षा के लिए प्रार्थना की.
मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने कहा कि विजयादशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. शस्त्र पूजन के माध्यम से हम शस्त्रों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं और उन्हें धर्म, सुरक्षा, और सद्भावना के लिए उपयोग करने की प्रेरणा लेते हैं. इस आयोजन ने न केवल सांस्कृतिक धरोहर को सहेजा, बल्कि समाज में एकता और जागरूकता का संदेश भी दिया.
पुराने समय में, राजा-महाराजा भी दशहरे के दिन शत्रुओं पर विजयी होने के लिए शस्त्र पूजा करते थे. इस पूजा में सभी शस्त्रों को एक साथ रखकर उन पर फूल चढ़ाए जाते थे और रोली लगाई जाती थी, इसके बाद कलावा बांधकर वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उनकी पूजा की जाती थी.
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