प्रयागराज: 12वीं पास कर शिक्षक बनने का सपना देखने वाले अभ्यर्थियों के लिए हाई कोर्ट से राहत भरी खबर है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला एवं प्रशिक्षण संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा संचालित डीएलएड दो वर्षीय प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में प्रवेश की अर्हता इंटर से बढ़ाकर स्नातक करने के राज्य सरकार के आदेश को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने 9 सितंबर के शासनादेश के उस अंश को रद्द कर दिया है जिसमें दो वर्षीय पाठ्यक्रम में प्रवेश की अर्हता इंटर से बढ़ाकर स्नातक कर दी गई थी.
कोर्ट ने कहा कि निजी विश्वविद्यालय से सामान्य स्थिति में अभ्यर्थी तीन वर्ष में सहायक अध्यापक होने की अर्हता प्राप्त कर लेगा जबकि नई व्यवस्था से उसे पांच वर्ष लगेंगे। कोर्ट ने राज्य सरकार के निर्णय को असंवैधानिक, मनमाना और भेदभावपूर्ण करार दिया है और माना है कि ये संविधान के अनुच्छेद 14 समानता के अधिकार के विपरीत है.
जस्टिस मनीष कुमार की बेंच ने ये आदेश यशांक खंडेलवाल और नौ अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है. कोर्ट ने कहा कि प्रवेश की प्रक्रिया 12 दिसंबर तक चलेगी. इसलिए याचियों को प्रवेश प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति दी जाए.
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इस आदेश से कुछ वर्ग के अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव होगा जो डीएलएड पाठ्यक्रम में प्रवेश लेना चाहते हैं क्योंकि इसी पाठ्यक्रम के स्पेशल कोर्स की अहर्ता अब भी इंटर है. याचिका में यह भी कहा गया कि प्राइवेट विश्वविद्यालय और कॉलेज द्वारा संचालित डीएलएड कोर्स में प्रवेश की अर्हता इंटर ही है. इसका लाभ यह है कि अभ्यर्थी दो वर्षीय कोर्स के दौरान डिस्टेंस मोड से स्नातक भी कर सकता है. इस प्रकार वह तीन वर्ष में सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति के लिए योग्य हो जाएगा. जबकि राज्य सरकार की व्यवस्था से स्नातक के बाद दो वर्षीय पाठ्यक्रम करने में पांच वर्ष लगेगा. इस प्रकार अभ्यर्थियों का दो वर्ष का समय व्यर्थ में जाया होगा.
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