लखनऊ; तारीख 11 फरवरी, 1968…सुबह करीब साढ़े तीन बजे, चंदौली जिले के मुलगसराय रेलवे स्टेशन बने एक यार्ड में लावारिस शव मिलने से अफरा-तफरी का माहौल था. इस शव को शंटिंग पोर्टर दिग्पाल ने देखा और उसने रेलवे के बड़े अधिकारियों को जानकारी दी. रेलवे की सूचना पर सुबह 3.45 बजे पुलिस के 3 सिपाही शव के पास पहुंचे. करीब 4 बजे एक एसआई वहां पहुंचा, जिसके बाद सुबह करीब 6 बजे रेलवे के डॉक्टरों ने भी अज्ञात व्यक्ति के मृत होने की पुष्टि कर दी. फिर शव की शिनाख्त प्रारंभ हुई. कई लोगों से पूछताछ के बाद पहचान नहीं हो सकी. देखते ही देखते यार्ड के आसपास लोगों की भीड़ जमा हो गई.
तभी भीड़ से निकलकर एक व्यक्ति शव का पंचनामा कर रहे पुलिसकर्मियों के पास पहुंचा और फफक-फफक कर रोने लगा. रुंधे गले से उस व्यक्ति ने कहा… अरे! यह तो दीनदयाल जी हैं… दीनदयाल जी के शव की पहचान करने वाले व्यक्ति का नाम गुरुबख्श कपाही था. वो दीनदयाल जी के करीबियों में से एक थे.
मुलगसराय रेलवे स्टेशन पर दीनदयाल जी के शव को देखकर गुरुबख्श कपाही की आंखों से आंसू नहीं रुक रहे थे. दीनदयाल जी को करीब से जानने वाले लोग बताते हैं कि वह हमेशा रेल से यात्रा करते थे. तब धन का अभाव था, इसलिए वह अकेले ही यात्रा कर भारतीय जनसंघ के कार्यों को संपादित करते थे.
कहा जाता है कि जब शव की शिनाख्त के लिए पुलिसकर्मियों ने पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के कपड़ों की तलाशी ली, तब उनकी जेब से एक रेलवे टिकट और 26 रुपये बरामद हुए थे. लेखक अमरजीत सिंह अपनी किताब ‘एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय’ में लिखते है कि जब दीनदयाल जी के शव की शिनाख्त की जा रही थी, तब उनके बाएं हाथ की कलाई पर एक घड़ी बंधी थी, जिस पर ‘नानाजी देशमुख’ का नाम लिखा हुआ था. साथ ही उस दौरान पंडित जी के हाथ में एक 5 रुपये का नोट भी था. लेकिन सिर्फ इससे उनकी पहचान नहीं की जा सकती थी.
लखीमपुर खीरी के गोला में रहे प्रचारक
राजनीति में आने से पहले दीनदयाल जी ने संघ प्रचारक के रूप में कार्य किया. दीनदयाल जी ने 1942 में….यूपी के लखीमपुर खीरी जिले के गोला कस्बे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में कार्यभार संभाला. दीनदयाल जी के विचारों और व्यवहार से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोग उनके जुड़ते चले गए. पंडित जी ने जब लखीमपुर खीरी जिले में प्रचारक की जिम्मेदारी संभाली थी, तब वहां सिर्फ एक या दो संघ की शाखाएं लगती थीं. लेकिन, दीनदयाल जी ने बड़ी संख्या में लोगों को संघ से जोड़ा और देखते ही देखते गोला कस्बे और आसपास के दर्जनों गांवों में संघ की शाखाएं लगने लगीं.