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हैदराबाद मुक्ति दिवस; हैदराबाद को इस्लामिक कंट्री बनाना चाहता था निजाम, सरदार पटेल ने ‘ऑपरेशन पोलो’ चलाकर पलट दी बाजी, जानिए इतिहास

भारत सरकार ने 13 मार्च 2024 को घोषणा की थी कि प्रति वर्ष 17 सितंबर को हैदराबाद मुक्ति दिवस मनाया जाएगा. दरअसल, 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया था. लेकिन तब हैदराबाद के निजाम ने अपना अलग देश बनाने की बात कही थी. हालांकि, सरदार पटेल ने 'ऑपरेशन पोलो' चलाकर 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद को भारत में शामिल कर लिया था. यह इतिहास काफी रोचक है...

live up bureau by live up bureau
Sep 17, 2024, 05:04 pm IST
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15 अगस्त 1947 को देख फिरंगी हुकूमत से स्वतंत्र हो गया. लेकिन, अंग्रेजों ने अपनी कुटिल चाल चलते हुए उस समय की रियासतों के सामने भारत या फिर पाकिस्तान में से किसी एक देश में शामिल होने, या फिर स्वतंत्र रहने का विकल्प दे दिया. हालांकि, उस समय भारत की ओर से मोर्चा सरदार वल्लभ भाई पटेल संभाल रहे थे. उन्होंने करीब 565 छोटी बड़ी रियासतों को भारत में शामिल कर लिया. लेकिन, उस समय की बड़ी और सबसे अमीर मानी जाने वाली हैदराबाद रियासत के निजाम ने भारत में शामिल होने से मना कर दिया. पहले निजाम की मंशा पाकिस्तान में शामिल होने की थी. लेकिन बाद में वह अपनी अलग रियासत बनाने की जिद पर अड़ा रहा.

अपनी मंशा के तहत निज़ाम मीर उस्मान अली ने मुहम्मद अली जिन्ना से सहयोग करने और भारतीय सेना से युद्ध करने की अपील की. ताकि वह अपनी रियासत को पाकिस्तान में शामिल कर सके. हालांकि, मुहम्मद अली जिन्ना भारत से पाकिस्तानी सेना को भिड़ाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. जिसके बाद हैदराबाद के निजाम ने पुर्तगालियों से मदद मांगी, लेकिन उसे वहां से भी कोई मदद नहीं मिली. दोनों ओर से निराशा हाथ लगने क बाद निजाम मीर उस्मान अली ने हैदराबाद सियासत को अलग इस्लामिक राष्ट्र बनाने का ऐलान कर दिया. हालांकि, हैदराबाद सियासत में 85 प्रतिशत आबादी हिंदू थी. जो भारत के साथ जाना चाहती थी. लेकिन निजाम अपने रजाकारों (निजामी सेना) के बल पर हिंदुओं का उत्पीड़न कराता था.

हैदराबाद रियासत में सिर्फ कहने के लिए ही 85 प्रतिशत हिंदू थे. निजाम ने रियासत के सभी प्रमुख पदों पर मुस्लिमों की तैनाती की थी. रियासत में हिंदुओं की गिनती सिर्फ कर देने के लिए ही थी. सुविधाओं के नाम पर निजाम उनका उत्पीड़न करवाता था. निजामी सेना हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन कराती थी. जिससे परेशान होकर हिंदुओं ने निजाम का विरोध करना प्रारंभ कर दिया. उस समय के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की निगाह लगातार हैदराबाद पर बनी हुई थी. क्योंकि भारत को एकजुट रखने के लिए हैदराबाद का भारत में विलय होना बहुत जरूरी था.

3 रियासतों ने नहीं मानी थी सरदार पटेल की बात

दरअसल, जब भारत स्वतंत्र हुआ…उस समय सरदार वल्लभ भाई पटेल ने छोटी बड़ी कुल 565 रियासतों को भारत में छोड़ लिया था. लेकिन जम्मू-कश्मीर, जूना गढ़ और हैदराबाद रियासत 15 अगस्त 1947 तक भारत में शामिल नहीं हुई थीं. पाकिस्तीन सेना समर्थित कबाइलियों ने 22 अक्तूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया. जिसके बाद जम्मू-कश्मीर के राजा ने भारत में शामिल होने की बात कर मदद मांगी. जिसके बाद 26 अक्टूबर, 1947 को जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा बना, जबकि जूनागढ़ का 20 फरवरी, 1948 को भारत में शामिल हुआ. लेकिन हैदराबाद का निजाम अपना अलग देश बनाने की जिद पर अड़ा रहा.

भारत सरकार और निजाम के बीच स्टैंडस्टिल एग्रीमेंट

भारत में शामिल न होने की जिद पर हैदराबाद का निजाम अड़ा रहा. निजाम की जिद को देखते हुए ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत सरकार और निजाम के बीच मध्यस्थता की. भारत सरकार और निजाम के बीच हुए समझौते के तहत इस बात पर सहमित बनी कि आजादी से पहले भारत का जो हैदराबाद के साथ पारस्परिक संबंध था वह बहाल रहेगा. साथ ही निजाम को एक हैदराबाद में एक प्रतिनिधि सरकार का गठन करना होगा और भारत सरकार व हैदराबाद रियासत एक दूसरे के वहां अपने प्रतिनिधियों की नियुक्ति करेगी. समझौता के तहत भारत सरकार ने अपने प्रतिनिधि के रूप में केएम मुंशी को हैदराबाद में नियुक्त किया. वहीं, निजाम ने अपने खासमखास लायक अली को अपनी रियासत का प्रधानमंत्री बनाया.

निजाम ने पाकिस्तान को दिया करोड़ों का कर्ज

हालांकि, निजाम अपने मनमर्जी से काम कर रहा था. 1948 में संधि का उल्लंघन करते हुए उसने पाकिस्तान को करोड़ों रुपये कर्ज के तौर पर दे दिया. वहीं, वह भारत सरकार को अपनी बातों में उलझा कर विदेश से भारी मात्रा में हथियारों की खरीद भी कर रहा था. साथ ही उसने भारत के बिना अनुमति के पाकिस्तान में अपने प्रतिनिधियों को नियुक्त कर दिया. और पाकिस्तान ने भी हैदराबाद रियासत में अपने प्रतिनिधियों की नियुक्ति कर दी. सरदार वल्लभ भाई पटेल को अब आभास हो चला था कि हैदराबाद भारत की एकता, अखंडता और आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बनता जा रहा है. इसलिए इसका भारत में विलय करवाना अति आवश्यक है.

रजाकार सीमा पर कर रहे थे लूट

हैदराबाद रियासत में रजाकारों (निजामी सेना के सैनिक) द्वारा वहां रहने वाले हिंदुओं को लगातार प्रताड़ित किया जा रहा था. निजामी के सैनिक सीमा पर लगातार गड़बड़ियां कर रहे थे. साथ ही भारत से जाने वाली रेलगाड़ियों में बैठे यात्रियों के साथ लूटपाट की जा रही थी. निजाम की दमनकारी नीतियां अपने प्रचंड पर थीं. उसने अपने हजारों विरोधियों को जेल में डाल दिया और अपनी रियासत के अंतर कांग्रेस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया. रजाकारों का आतंक धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था. 22 मई, 1948 को रजाकारों ने हैदराबाद के समीप स्थित गंगापुर रेलवे स्टेशन पर हमला कर दिया. हालात चिंताजनक होते देख भारत सरकार ने हैदराबाद रियासत पर सैन्य कार्रवाई की योजना तैयार की.

ऑपरेशन पोलो का आगाज

रजाकारों की अराजकता और निजाम की क्रूरता को देखते हुए सरदार वल्लभ भाई पटेल को समझ आ गया था कि हैदराबाद रियासत का भारत में विलय करना अति आवश्यक हो गया है. सरदार वल्लभ ने हैदराबाद पर पुलिस कार्रवाई की जिम्मेदारी मेजर जनरल जेएन चौधरी को सौंपी. भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन पोलो’ चलाकर हैदराबाद को तीनों ओर से घेर लिया. निजामी सेना की अपेक्षा भारतीय सेना काफी मजबूत थी. भारत के पास उस समय की बेहतर मारक क्षमता वाले हथियार थे. साथ ही हैदराबाद के लोगों का भी सेना को समर्थन प्राप्त था. वहां के लोग निजाम से मुक्ति चाहते थे.

13 सितंबर 1948 को प्रारंभ हुई पुलिस कार्रवाई

भारतीय सेना ने 13 सितंबर, 1948 की सुबह 4 बजे हैदराबाद पर अपनी कार्रवाई प्रारंभ कर दी, जो 5 दिनों के बाद 17 सितंबर, 1948 की शाम 5 बजे समाप्त हो गई. निजाम उस्मान अली ने रेडियो पर संघर्ष विराम का अह्वान करते हुए रजाकारों पर प्रतिबंध लगा दिया. इसके साथ ही हैदराबाद पर जारी भारत का पुलिस एक्शन समाप्त हो गया. सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रणनीति के तहत हैदराबाद पर की गई कार्रवाई को पुलिस एक्शन नाम इसलिए दिया था, ताकि इस लड़ाई में कोई दूसरा देश दखल न दे.

1950 में हैदराबाद पूर्ण रूप से भारत का हिस्सा बना

भारत की पुलिस कार्रवाई समाप्त होने बाद भारत सरकार ने मेजर जनरल जेएन चौधरी को हैदराबाद का सैन्य गवर्नर नियुक्त किया. वह इस पद पर 24 नवंबर, 1949 तक रहे. इसी बीच निजाम ने हैदराबाद रियासत में भारत का संविधान लागू होने की घोषणा की. जिसके बाद 26 जनवरी, 1950 को हैदराबाद भारत का पूर्ण राज्य बन गया. जिसके बाद 1950 में एमके वेलोडी राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया. साथ ही निजाम को राज्य प्रमुख.

यह भी पढ़ें: सामाजिक सुधार और सांप्रदायिक ताकतों को रोकना, दिलचस्प है Ganesh Utsav का इतिहास

मेजर जनरल जेएन चौधरी बने हैदराबाद का सैन्य गवर्नर

मेजर जनरल जेएन चौधरी को हैदराबाद का सैन्य गवर्नर नियुक्त किया गया। 1949 तक वह इस पद पर बने रहे। 24 नवंबर, 1949 को निजाम ने घोषणा की कि भारत का संविधान ही हैदराबाद का संविधान होगा और 26 जनवरी, 1950 को हैदराबाद राज्य नियमित तौर पर भारत का हिस्सा बन गया।

 

 

 

 

 

 

Tags: 'Operation Polo'Hyderabad Liberation DayHyderabad NizamSardar Vallabhbhai PatelWhen did Hyderabad join India
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