लखनऊ। लेटरल एंट्री (Lateral Entry) के जरिए प्रशासनिक पदों पर विषय विशेषज्ञों की नियुक्ति के मुद्दे पर विपक्ष की राजनीति उनके गले की फांस बनती दिख रही है। सरकार ने उनके इस पैतरे को उल्टा कर दिया है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इसे आरक्षण विरोधी करार दिया है। वहीं, अब भाजपा ने UPA सरकार के कार्यकाल में लेटरल एंट्री (Lateral Entry) के जरिए प्रशासनिक पदों पर लाए काँग्रेस के दिग्गजों के नाम गिना दिए हैं। भाजपा ने कहा है कि यूपीए सरकार के समय में ही लेटरल एंट्री (Lateral Entry) का प्रस्ताव लाया गया था, और वर्तमान सरकार ने इसे पारदर्शी तरीके से लागू किया है।
‘मनमोहन सिंह, सैम पित्रोदा, रघुराम राजन… सब इसी रास्ते सरकार में शामिल हुए’
सरकार ने प्रशासनिक अधिकारियों की लेटरल एंट्री (Lateral Entry) को लेकर कहा है कि यह प्रक्रिया दशकों से चली आ रही है, जिसमें कई प्रमुख अधिकारी इस मार्ग से सरकार में शामिल हुए थे। उदाहरण के लिए, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह 1971 में लेटरल एंट्री (Lateral Entry) के जरिए विदेश व्यापार मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार बने थे। वहीं, सैम पित्रोदा को 1980 के दशक में राजीव गांधी के प्रशासन के दौरान भारत सरकार में लाया गया, जबकि पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार बिमल जालान, कौशिक बसु और रघुराम राजन भी इसी प्रक्रिया के तहत सरकार में शामिल हुए थे।
मोंटेक सिंह अहलूवालिया योजना आयोग के उपाध्यक्ष और नंदन नीलेकणी UIDAI के प्रमुख बने थे
सरकार की तरफ से बताया गया है कि मोंटेक सिंह अहलूवालिया को शिक्षाविदों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से लाकर 2004 से 2014 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था और इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणी को 2009 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) का प्रमुख बनाया गया था।
PM मोदी ने इसे और अधिक पारदर्शी और सुव्यवस्थित बनाया – अर्जुन राम मेघवाल
विधि और न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस मुद्दे पर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान लेटरल एंट्री (Lateral Entry) की शुरुआत की थी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस व्यवस्था को और अधिक पारदर्शी और सुव्यवस्थित बना दिया है।
केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लेटरल एंट्री पर उठे विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कांग्रेस द्वारा उठाए गए सवाल पाखंडपूर्ण हैं। उन्होंने X पर लिखा, “लेटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट यूपीए सरकार के दौरान आया था और 2005 में यूपीए के तहत स्थापित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने इसके लिए सिफारिश की थी। वीरप्पा मोइली ने उस आयोग की अध्यक्षता की थी। NDA सरकार ने इस सिफारिश को लागू करने के लिए एक पारदर्शी प्रक्रिया विकसित की है, जिसमें UPSC के माध्यम से निष्पक्ष भर्ती की जाएगी। यह सुधार शासन में पारदर्शिता और प्रभावशीलता को बढ़ाएगा।”
Lateral entry
INC hypocrisy is evident on lateral entry matter. It was the UPA government which developed the concept of lateral entry.
The second Admin Reforms Commission (ARC) was established in 2005 under UPA government. Shri Veerappa Moily chaired it.
UPA period ARC…
— Ashwini Vaishnaw (@AshwiniVaishnaw) August 18, 2024
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2005 में UPA को मिला था लेटरल एंट्री पर प्रशासनिक सुधार आयोग का जबरदस्त समर्थन
बता दें, जब 2005 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार सत्ता में काबिज हुई, तब पहली बार लेटरल एंट्री (Lateral Entry) के जरिए निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को नौकरशाही के शीर्ष पदों पर नियुक्त करने की योजना लाई गई। यह स्कीम वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली द्वारा प्रस्तावित की गई थी और इसे दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग का जबरदस्त समर्थन भी मिला। वही जब अब UPSC ने लेटरल एंट्री (Lateral Entry) के माध्यम से 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की भर्ती के लिए अधिसूचना जारी की तो UPA के नए नवेले गठबंधन के नरेंद्र मोदी सरकार निशाने पर ले लिया है। विपक्ष का आरोप है कि लेटरल एंट्री (Lateral Entry) ने ओबीसी, एससी, और एसटी के आरक्षण अधिकारों को कमजोर कर दिया है। जब ऐसा होता तो 2005 में UPA इसे नहीं अपनाती और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, विमल जालान, कौशिक बसु, रघुराम राजन, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, नंदन नीलेकणी जेसे दिग्गजों की सरकार में एंट्री नहीं हो पाती।
लोकसभा में सरकार ने इसमें आरक्षण को लेकर क्या कहा था ?
हाल ही में, 24 जुलाई को लोकसभा में सरकार ने बताया कि अब तक लेटरल एंट्री के तहत 63 पद भरे जा चुके हैं, जिसमें से 35 नियुक्तियां प्राइवेट सेक्टर से की गई हैं। इन 63 अधिकारियों में से 57 अभी भी सक्रिय रूप से सेवा में हैं।
सरकार ने मानसून सत्र में लेटरल एंट्री (Lateral Entry) के तहत भर्ती किए गए प्रशासनिक अधिकारियों के मामले में आरक्षण को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि लेटरल एंट्री भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण लागू नहीं होता, क्योंकि यह ‘विशेषज्ञता’ आधारित नियुक्तियां हैं, जिनमें सिंगल कैडर अपॉइंटमेंट्स होते हैं। सरकार ने तर्क दिया है कि इन नियुक्तियों में ‘विशेषज्ञता’ को प्राथमिकता दी जाती है और इसलिए आरक्षण के लिए इसमें कोई प्रावधान नहीं है। इसके अलावा, यह भी स्पष्ट किया गया कि लेटरल एंट्री के जरिए पदोन्नति की संभावनाओं पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है और न ही निचले कर्मचारियों की उन्नति बाधित होती है। चूंकि, ये भर्तियाँ कान्ट्रैक्ट पर 3 साल की होती हैं और इन्हें कार्य की उत्कृष्टता के आधार पर 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है।
क्या है लेटरल एंट्री, कौन बन सकता है अधिकारी ?
लेटरल एंट्री (Lateral Entry) का मतलब निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधी भर्ती से है, जिससे वे केंद्र सरकार के मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक, और उप सचिव जैसे उच्च पदों पर काम कर सकें। इस प्रक्रिया के तहत, उन व्यक्तियों को मौका दिया जाता है, जिनके पास कम से कम 15 वर्षों का अनुभव हो और जिनकी न्यूनतम आयु 45 वर्ष हो। इसके अलावा, उम्मीदवार के पास किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री होनी चाहिए। इस पहल का उद्देश्य सरकारी नीतियों और कार्यान्वयन में विशेषज्ञता और नए दृष्टिकोण को शामिल करना है।