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Home उत्तर प्रदेश अवध

लखनऊ के गुलाम होने के काफी दिनों बाद तक आजाद रहा सीतापुर, यहां के क्रांतिकारियों ने ब्रितानी हुकूमत को खूब छकाया

मां भारती को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए सशस्त्र क्रांतिकारियों के साथ-साथ निहत्थे, निवस्त्र और नंगे पैर तक चलने वाले भारतवासियों में जोश था। स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई में यूपी के सीतापुर जिले का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है।

live up bureau by live up bureau
Aug 14, 2024, 12:57 pm IST
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लखनऊ: भारत के स्वाधीनता संग्राम को अगर महाभारत का युद्ध कहा जाए तो गलत नहीं होगा। अंग्रेजों की चतुरंगी सेना से लोहा लेना कोई सामान्य बात नहीं थी। इसके लिए राष्ट्रसेवा का दृढ संकल्प, पराक्रम, शौर्य और राष्ट्र के लिए स्वयं को स्वाहा कर देने वाले भाव की आवश्यक थी। शायद फिरंगियों को नहीं पता था कि यह सभी गुण हम भारतीय में जन्मजात होते हैं।

मां भारती को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए सशस्त्र क्रांतिकारियों के साथ-साथ निहत्थे, निवस्त्र और नंगे पैर तक चलने वाले भारतवासियों में जोश था। स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई में यूपी के सीतापुर जिले का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। 1858 में अंग्रेज लखनऊ में तो अपना झंडा फहराने में सफल रहे, लेकिन फिरंगी सरकार सीतापुर के क्रांतिकारियों के आगे टिक नहीं पाई। जिसके चलते सीतापुर, लखनऊ के गुलाम होन के बाद भी आजाद रहा।

यहां मितौली (लखीमपुर जिला) के राजा लोने सिंह और खैराबाद के राजा बख्शी हरप्रसाद ने फिरंगियों को खूब छकाया। दोनों ने अपने पराक्रम से अंग्रेजों के सपने को नस्तेनाबुत कर दिया। हालांकि, बाद में खैराबाद के राजा बख्शी हरप्रसाद अकेले पड़ गए। जिसका फायदा उठाकर अंग्रेजों ने सीतापुर पर भी कब्जा कर लिया। फिर भी अक्टूबर 1858 में लखनऊ के गुलाम होने के काफी दिनों बाद तक सीतापुर आजाद रहा।

सीतापुर गोलीकांड (18 अगस्त सन 1942)

18 अगस्त सन 1942 में सीतापुर के मोतीबाग (अब लालबाग) में क्रांतिकारियों की एक सभा थी। इन बैठक में सीतापुर जिले भर के कई क्रांतिकारियों ने भाग लिया। बैठक शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो रही थी। तभी ब्रिटिश हुकूमत के अधिकारियों को इसकी जानकारी मिल गई। अंग्रेज अधिकारियों ने पहले निहत्थे और शांतिपूर्वक बैठे लोगों पर लाठीचार्ज करवाया। फिर गोलियों की बौछार करा दी। इस घटना में 300 से अधिक लोग घायल हो गए, वहीं कई क्रांतिकारी बलिदान हो गए। इतना खून बहा कि मोतीबाग की मिट्टी लाल हो गई। कहा जाता है कि तभी से मोतीबाग लालबाग पड़ गया।

इस घटना में बलिदान होने वाले क्रांतिकारियों में मोतीबाग निवासी कल्लूराम, सीतापुर जिले के मधवापुर गांव निवासी चंद्रभाल मिश्र, मोतीबाग निवासी बाबू भुर्जी, हाजीपुर गांव निवासी मैकूलाल, कैमहरा गांव निवासी मुन्नेलाल और मिश्रिख निवासी मोहर्रम अली का नाम शामिल है।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मनोहर लाल मिश्र ने कभी नहीं ली पेंशन

सीतापुर जिले के नेरी गांव निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मनोहर लाल मिश्र ने अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देते हुए सीतापुर के कोषागार पर फिरंगी हुकूमत का झंडा उतारकर तिरंगा फहरा दिया। इसके बाद वह अंग्रेजों के निशाने पर आ गए। हालांकि, मनोहर लाल मिश्र अंग्रेजों की परवाह किए बिना क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेते रहे। इन्हीं सामूहिक प्रयासों के चलते 1947 में देश आजाद हो सका। आजादी मिलने के बाद भारत सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को पेंशन देने का निर्णय लिया। लेकिन, मनोहर लाल मिश्र इतने देशभक्त थे, कि उन्होंने पेंशन लेने से साफ मना कर दिया। मिश्र ने कहा कि देश सेवा हमारा कर्तव्य था, हमें इसके लिए पेंशन की जरूरत नहीं है। जो इसके हकदार हैं, उन्हीं को पेंशन दी जाए।

ब्रह्मावली गांव के क्रांतिवीर सीताराम त्रिवेदी

सीतापुर जिले का ब्रह्मावली गांव देश की अभूतपूर्व सेवा के लिए जाना जाता है। यहां के रहने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
सीताराम द्विवेदी का पूरा जीवन देश की सेवा करते हुए बीता। उन्होंने कभी भी अंग्रेजों के सामने सिर नहीं झुकाया। वह घर-गृहस्थी वाले थे, इसलिए सभी उन्हें समझाते थे कि आप अपने बच्चों और पत्नी का ध्यान रखो। लेकिन इस पर सीताराम त्रिवेदी जवाब देते थे कि ‘समझ लो मैं मर गया।’

उन्हें अंग्रेजों से इतना बैर था कि वह जब भी किसी अंग्रेजी अधिकारी को देखते तो ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ के नारे लगाने लगते। जिससे गुस्सा होकर फिरंगी उन्हें कोड़ा मारने की सजा सुनाते। अंग्रेज इतनी निर्दयता से उन्हें कोड़ा मारते कि उनका पूरा शरीर लहूलुहान हो जाता। सीताराम द्विवेदी से परेशान होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें लखनऊ कारागार भेज दिया। यहां भी वह प्रतिदिन ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ के नारे लगाते, जिसके चलने उन्हें अनेको यातनाएं दी जातीं। इन्हीं यातनाओं के चलते उनका शरीर इतना कमजोर हो गया कि जेल से घर आने के 6 माह बाद उनका निधन हो गया।

स्वाधीनता संग्राम में सीतापुर के क्रांतिकारी

सीतापुर जिले से बड़ी संख्या में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने स्वाधीनता की लड़ाई में भाग लिया। इन्हीं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में सिधौली निवासी अर्जुन प्रसाद, बिसवां निवासी अवध बिहारी, कमलापुर के रहने वाले इलाही बख्श, कुंवरपुर निवासी कन्हैयालाल, बढ़ैया गांव निवासी कमला प्रसाद, महोली निवासी अंगने लाल, नरनी कठिघरा निवासी ओरीलाल, नेरी गांव निवासी गयाप्रसाद, बड़ागांव निवासी गिरजादयाल, चतुरैया गांव निवासी जमुनादीन प्रमुख हैं।

Tags: British RuleIndependence DayIndia's freedom struggleRevolutionaries of SitapurSitapurSitapur firing
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