उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल से लुप्तप्राय हो रहे पूर्वांचल के पनियाले को जल्द ही नया जीवन मिलेगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध लखनऊ स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान पिछले वर्ष से इसी पहल पर कार्य कर रहा है। इस कार्य में गोरखपुर स्थित जिला उद्यान विभाग और स्थानीय स्तर के कुछ प्रगतिशील किसान भी बागवानी संस्थान की मदद भी कर रहे हैं। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक टी. दामोदरन ने बताया कि संस्थान का प्रयास है कि यहां से विकसित किए जाने वाले पौधों के फलों की गुणवत्ता बेहतर हो। बागवानों को कैनोपी प्रबंधन का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।
इससे बागों का रखरखाव भी आसान होगा। पनियाला के पेड़ उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज क्षेत्रों में पाए जाते हैं। 5-6 दशक पहले इन क्षेत्रों में बहुतायत में मिलने वाला पनियाला अब लुप्तप्राय है। स्वाद में यह खट्टा कुछ मीठा और थोड़ा सा कसैला होता है। स्वाद में खास होने के साथ यह औषधीय गुणों से भरपूर भी होता है। पनियाला को लुप्त होने से बचाने और बेहतर गुणवत्ता के पौध तैयार करने के लिए पिछले वर्ष भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों ने गोरखपुर और पड़ोसी जनपदों के पनियाला बाहुल्य क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया।
इस दौरान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. दुष्यंत मिश्र एवं डॉ. सुशील कुमार शुक्ल ने कुछ स्वस्थ पौधों से फलों के नमूनों को लिया जिसके बाद उन्होंने बताया कि अब संस्था की प्रयोगशाला में इन फलों का भौतिक एवं रासायनिक विश्लेषण कर उनमें उपलब्ध विविधता का पता लगाया जाएगा। उपलब्ध प्राकृतिक वृक्षों से सर्वोत्तम वृक्षों का चयन कर उनको संरक्षित करने के साथ कलमी विधि से नए पौधे तैयार करने के बाद इन्हें किसानों और बागवानों तक उपलब्ध कराया जाएगा। डॉ. दुष्यंत ने बताया कि इस वर्ष दशहरे के आसपास जब पनियाला का पीक सीजन होता है तो उस समय संस्था की टीम जाकर गुणवत्ता के फल लाकर उनकी गुणवत्ता चेक करेगी। जो सबसे बेहतर गुणवत्ता के फल होंगे उनसे ही नर्सरी तैयार कर किसानों को दी जाएगी।
निदेशक दामोदरन का कहना है कि संस्था किसानों को तकनीक के अलावा बाजार उपलब्ध कराने तक सहयोग करेगी। औषधीय गुणों से भरपूर पनियाला के लिए GI टैगिंग संजीवनी साबित होगी। इससे लुप्तप्राय हो चले इस फल की पूछ बढ़ जाएगी। सरकार द्वारा इसकी ब्रांडिंग से भविष्य में यह भी टेराकोटा की तरह गोरखपुर का खास ब्रांड होगा। कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार गोरखपुर के वरिष्ठ हॉर्टिकल्चर वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह के अनुसार GI टैग मिलने का लाभ न केवल गोरखपुर के किसानों को बल्कि देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, बहराइच, गोंडा और श्रावस्ती के बागवानों को भी मिलेगा। ये तमाम जनपद समान एग्रोक्लाइमेटिक में आते हैं। इन जनपदों के कृषि उत्पादों की खूबियां एक जैसी होंगी।
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