लखनऊ: बसपा इन दिनों अपने सबसे बुरे राजनीतिक दौर से गुजर रही है। 2007 के विधानसभा चुनाव में अपने दम पर सरकार बनाने वाली बसपा के पास वर्तमान में यूपी विधानसभा में सिर्फ एक सीट है। वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा का कोर वोट बैंक माने जाने वाले जाटव समाज ने भी पार्टी से दूरी बना ली। जिसका नतीजा यह हुआ कि बसपा का वोट शेयर गिरकर 8 प्रतिशत पर पहुंच गया। अब ऐसे में मायावती ने दलितों, पिछड़ों और गरीबों को बसपा से जोड़ने के लिए पार्टी के सदस्यता शुल्क में भारी कटौती की है। जिससे अधिक से अधिक लोग बीएसपी से जुड़ सकें।
अब अगर कोई बसपा की सदस्यता लेता है तो उसे सिर्फ 50 रुपये जमा करने होंगे। जबकि इसके पहले बसपा की सदस्यता ग्रहण करने के लिए 200 रुपये सदस्यता शुल्क देना होता था। अचानक से 150 रुपये सदस्यता शुल्क में कटौती करने की सबसे बड़ी वजह है, बहुजन समाज पार्टी में अधिक से अधिक दलितों और पिछड़ों को जोड़ना।
सूत्रों का कहना है कि आने वाले दिनों में देश के कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव हैं। जिसमें से हरियाणा, झारखंड, दिल्ली, महाराष्ट्र राज्य प्रमुख हैं। वहीं, यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर भी उपचुनाव होने हैं। इसको दखते हुए बसपा ने बड़ी योजना बनाई है। सदस्यता शुल्क में कटौती के निर्णय को, विभिन्न राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों व उपचुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है।
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बसपा के लिए वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौती है, अपने जनाधार को बचाना। क्योंकि एक ओर जहां भाजपा व सपा दलित वोट बैंक में सेंधमारी कर रही है, वहीं दूसरी ओर आजाद समाज पार्टी प्रमुख चंद्रशेखर रावण से मिल रही चुनौती। ऐसे में मायावती ने यूपी की सभी 10 विधानसभा सीटों पर होने उपचुनाव को लड़ने का निर्णय लिया है। साथ ही आकाश आनंद को भी पार्टी ने फिर से पुरानी जिम्मेदारी सौंप दी है। आकाश आनंद की बसपा में वापसी चंद्रशेखर रावण के दलित समाज में बढती पैठ को रोकने के तौर पर भी देखी जा रही है।