नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आज सोमवार को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में शामिल होने जगन्नाथपुरी पहुंचीं। रथ यात्रा के दर्शन करने के बाद वह पुरी के समुद्र तट पर पहुंचीं। यहां उन्होंने कुछ देर समय व्यतीत कर शुद्ध वातावरण और गहन शांति का अनुभव किया। राष्ट्रपति भवन ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल से कुछ तस्वीरें शेयर की हैं। इन तस्वीरों में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू समुद्र किनारे चेयर पर बैठी चिंतन मुद्रा में दिख रही हैं।
ପୃଥିବୀରେ ଏପରି ଅନେକ ସ୍ଥାନ ରହିଛି, ଯାହା ସଂସ୍ପର୍ଶରେ ଆସିଲେ ଆମେ ଜୀବନର ଅର୍ଥ ବୁଝିପାରୁ । ବଣ-ପାହାଡ଼, ନଦ-ନଦୀ ଓ ସାଗର-ବେଳାର ସମାହାର ଏହି ଯେଉଁ ପ୍ରକୃତି, ଆମେ ତା’ର ଅଂଶବିଶେଷ ବୋଲି ଆମର ହୃଦବୋଧ ହୁଏ । ମୁଁ ଆଜି ବେଳାଭୂମିରେ ଚାଲୁଥିଲା ବେଳେ ମନ୍ଦ ମନ୍ଦ ପବନ ବହୁଥିଲା, ସମୁଦ୍ରର ଢେଉ ଗର୍ଜନ କରୁଥିଲା ଏବଂ ଜଳରାଶି ଦିଗବଳୟକୁ… pic.twitter.com/kjRZels81A
— President of India (@rashtrapatibhvn) July 8, 2024
आधिकारिक एक्स हैंडल से फोटो शेयर करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लिखा कि ऐसे स्थान हैं जो हमें जीवन के सार के करीब लाते हैं और हमें याद दिलाते हैं कि हम प्रकृति का हिस्सा हैं। पहाड़, जंगल, नदियां और समुद्र तट हमारे भीतर की किसी गहरी चीज को आकर्षित करते हैं। जैसे ही मैं आज समुद्र के किनारे चल रही थी, मुझे आसपास के वातावरण के साथ एक जुड़ाव महसूस हुआ- हल्की हवा, लहरों की गड़गड़ाहट और पानी का विशाल विस्तार। यह एक ध्यानपूर्ण अनुभव था।
उन्होंने कहा आगे लिखा कि इससे मुझे गहन आंतरिक शांति मिली, जो मुझे तब भी महसूस हुई थी जब मैंने कल महाप्रभु श्री जगन्नाथजी के दर्शन किए थे। ऐसा अनुभव पाने वाली मैं अकेली नहीं हूं। हम सभी इस तरह महसूस कर सकते हैं जब हमारा सामना किसी ऐसी चीज से होता है जो हमसे कहीं बड़ी है, जो हमें सहारा देती है और जो हमारे जीवन को सार्थक बनाती है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपनी पोस्ट में लिखा कि दैनिक कामकाज की आपाधापी में हम प्रकृति के साथ इस संबंध को खो देते हैं। मानव जाति ने प्रकृति पर कब्जा कर लिया है और अपने अल्पकालिक लाभों के लिए इसका दोहन कर रही है। नतीजा सबके सामने है। इस गर्मी में भारत के कई हिस्सों को लू की भयानक शृंखला का सामना करना पड़ा। हाल के वर्षों में दुनिया भर में मौसम में बदलाव हुआ है। आने वाले दशकों में स्थिति और भी बदतर होने का अनुमान है।
राष्ट्रपति ने कहा कि पृथ्वी की सतह का सत्तर प्रतिशत से अधिक भाग महासागरों से बना है और ग्लोबल वार्मिंग के कारण वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि हो रही है, जिससे तटीय क्षेत्रों के जलमग्न होने का खतरा है। विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के कारण महासागरों और वहां पाई जाने वाली वनस्पतियों और जीवों की समृद्ध विविधता को भारी नुकसान हुआ है।
प्रगति संरक्षण के प्रति मानव दायित्वों को याद दिलाते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि सौभाग्य से प्रकृति की गोद में रहने वाले लोगों ने ऐसी परंपराएं कायम रखी हैं जो हमें रास्ता दिखा सकती हैं। उदाहरण के लिए, तटीय क्षेत्रों के निवासी हवाओं और समुद्र की लहरों की भाषा जानते हैं। अपने पूर्वजों का अनुसरण करते हुए, वे समुद्र को भगवान के रूप में पूजते हैं। मेरा मानना है कि पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण की चुनौती से निपटने के दो तरीके हैं। पहला- सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को व्यापक कदम उठाने चाहिए। दूसरा स्थानीय स्तर पर नागरिक भी इसमें सहयोग करें। आइए बेहतर कल के लिए व्यक्तिगत रूप से स्थानीय स्तर पर जो कुछ भी हम कर सकते हैं, उसे करने का संकल्प लें।