भारत भूमि,, महापुरुषों की भूमि रही है। यहां समय-समय पर कई योग्य आत्माओं ने जन्म लिया और इस पावन धरा को गर्व करने का अनोखा सौभाग्य प्रदान किया। यहां एक ऐसे संन्यासी भी हुए, जिनका अमेरिका के शिकागो शहर में दिया गया संबोधन आज भी युवाओं के बीच में सनातन संस्कृति का प्रचार और प्रसार कर रहा है। जी हां हम बात कर रहे हैं स्वामी विवेकानंद की, जिनके संबोधन को सुनकर पश्चिम के देश भी तालियां बजाने से नहीं चूके।
11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने जो भाषण दिया, उसके बाद पूरा कम्युनिटी हॉल काफी देर तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था। स्वामी विवेकानंद के इस भाषण को याद कर आज भी हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
जब विवेकानंद शिकागो के खचाखच भरे हुए हाल में भाषण देने आए तो लोगों को अहसास भी नहीं था, कि उनके शुरुआती वचन उन्हें ऐसा प्रभावित करेंगे कि वे उनके भाषण के जादू में खो जाएंगे। उन्होंने आध्यात्म और भाईचारे का जो संदेश दिया, उसने भारत की एक अलग छवि दुनिया के सामने रखी। स्वामी जी को धर्म, विज्ञान, कला, दर्शन, सामाजिक और साहित्य का ज्ञाता माना जाता है। आज भी उनके विचारों से युवाओं को तरह-तरह की प्रेरणा मिलती है।
नरेंद्र नाथ के जीवन में गुरू रामकृष्ण की रही मुख्य भूमिका
1881 में नरेंद्र नाथ की उनके पड़ोसी सुरेंद्र नाथ के घर पर रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात हुई थी। शुरुआत में रामकृष्ण परमहंस ने नरेंद्र नाथ को एक पल के लिए भी अपना पक्ष रखने की अनुमति नहीं दी। काफी सलाह के बाद उन्होंने नरेन्द्र को अपने पास बैठाया। जब भी दोनों अकेले होते थे, तो खूब चर्चा करते। एक दिन रामकृष्ण परमहंस ने नरेंद्र नाथ को उनके अधूरे मिशन को पूरा करने की जिम्मेदारी देने का फैसला किया। रामकृष्ण जी ने एक कागज़ में लिखा, “नरेंद्र जनता को ज्ञान देने का काम करेंगे।” बाद में रामकृष्ण जी ने नरेंद्र नाथ को संन्यास के मार्ग पर चलाया और उन्हें स्वामी विवेकानंद नाम दिया। रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद को सिखाया कि मानव की सेवा ईश्वर की सबसे प्रभावी पूजा है।
रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद, विवेकानंद ने 1 मई 1897 में अपने गुरु के नाम पर कोलकाता में रामकृष्ण मिशन और गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना 9 दिसंबर 1898 को की । उन्होंने कई ग्रंथों जैसे ज्ञानयोग, राजयोग और योग की रचना की।
जब शिकागो की धर्म संसद में गूंजी तालियों की गड़गड़ाहट
जब भी स्वामी विवेकानंद की बात आती है, तो अमेरिका के शिकागो में दिए उनके भाषण का जिक्र जरूर होता है। शिकागो की धर्म संसद में दिया गया ये वो भाषण है, जिसने पूरी दुनिया के सामने भारत को एक मजबूत छवि के साथ पेश किया। स्वामी विवेकानंद के दिए हुए इस भाषण को 130 साल से भी ज्यादा का समय हो गया है,, लेकिन आज इस ऐतिहासिक भाषण की चर्चा होती रहती है। इतना ही नहीं स्वामी जी के इस भाषण के बाद ऑडियंस की ओर से उन्हें स्टैंडिंग ओवेशन भी मिला था और पूरे 2 मिनट तक पूरे हॉल में तालियां बजती रहीं थीं।
विश्वभर में दिए कई भाषण
शिकागो के भाषण के बाद, उन्होंने विश्व भर में कई अन्य भाषण दिए। इस दौरान उन्होंने कई लोगों जैसे बहन निवेदिता, मैक्स मुलर, पॉल डूसन के साथ मुलाकात की। विवेकानंद ने लाहौर में अपने संक्षिप्त प्रवास के दौरान तीन व्याख्यान दिए। इनमें से पहला “हिंदू धर्म के सामान्य आधार” पर था, दूसरा “भक्ति” पर था और तीसरा “वेदांत” पर प्रसिद्ध व्याख्यान था।
भारत की धरती की ताकत को पूरे विश्व के सामने रखने वाले स्वामी विवेकानंद 40 वर्ष से भी कम आयु में 4 जुलाई 1902 को इस दुनिया से विदा हो गए। वैसे तो उनका पूरा जीवन युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। उन्होंने युवा अवस्था में ही सांसारिक मोह माया को त्याग कर सिर्फ और सिर्फ आध्यात्म और हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने पूरे विश्व को ये बता दिया कि भारत की धरती वास्तव में कितनी महान है।