नई दिल्ली: लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने के बाद ओम बिरला स्पीकर के आसन पर विराजमान हुए। इस दौरान सभी दल के नेताओं ने उन्हें बधाई दी। बधाई की प्रक्रिया संपन्न होने के बाद स्पीकर ओम बिरला ने लोकसभा में आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर पेश किए गए प्रस्ताव पर अपनी बात रखी। उन्होंने आपातकाल के काले दौर का भी जिक्र करते हुए कहा कि यह सदन 1975 में देश में लगाए गए इमरजेंसी की कड़े शब्दों में निंदा करता है। हम उन लोगों के प्रयासों की सराहना करते हैं, जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया।
स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि भारत के इतिहास में 25 जून 1975 के उस दिन को हमेशा काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा। इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई और बाबा साहब द्वारा निर्मित संविधान पर प्रचंड प्रहार किया था। उन्होंने कहा कि भारत की पहचान लोकतंत्र की जननी के तौर पर होती है। ऐसे भारत में इंदिरा गांधी द्वारा तानाशाही थोप दी गई। भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला गया। साथ ही अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा गया। भारत के लोगों से उनकी आजादी छीन ली गई। विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। पूरे देश को जेलखाना बना दिया गया। साथ ही तब की तानाशाही सरकार ने मीडिया पर अनेकों प्रतिबंध लगा दिए थे।
लोकसभा अध्यक्ष ने आगे कहा कि इतना ही नहीं, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कमिटेड ब्यूरोक्रेसी और कमिटेड ज्यूडिशियरी की भी बात कही, जो कि उनकी लोकतंत्र विरोधी रवैये का एक उदाहरण है। इमरजेंसी अपने साथ ऐसी असामाजिक और तानाशाही की भावना से भरी भयंकर कुनीतियां लेकर आई, जिसने गरीबों, दलितों और वंचितों का जीवन तबाह कर दिया।
इमरजेंसी के दौरान लोगों को कांग्रेस सरकार द्वारा जबरन थोपी गई अनिवार्य नसबंदी व शहरों में अतिक्रमण हटाने के नाम पर की गई मनमानी का और सरकार की कुनीतियों का प्रहार झेलना पड़ा। ये सदन उन सभी लोगों के प्रति संवेदना जताना चाहता है जिन्होंने इस पीड़ा को झेला है।
बिरला ने कहा कि इमरजेंसी ने भारत के कितने ही नागरिकों का जीवन तबाह कर दिया था, कितने ही लोगों की मृत्यु हो गई थी। इमरजेंसी के उस काले कालखंड में, कांग्रेस की तानाशाह सरकार के हाथों अपनी जान गंवाने वाले भारत के ऐसे कर्तव्यनिष्ठ और देश से प्रेम करने वाले नागरिकों की स्मृति में हम दो मिनट का मौन रखते हैं।