नई दिल्ली- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख को अनगिनत ग्लेशियरों की वजह से ‘जल मीनार’ कहा जाता है। लेकिन इन दिनों ग्लेशियर बहुत तेजी के साथ पिघल रहे हैं। ऐसे में एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस सदी के आखिर तक 70 प्रतिशत ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे। वहीं पूरा देश इन दिनों भीषण गर्मी का सामना कर रहा है। कश्मीर भी इससे बचा नहीं रहा। यहां भी प्रचंड गर्मी का सीधा असर हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों पर पड़ रहा है। डेटा के अनुसार, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में लगभग 18 हजार ग्लेशियर हैं। जो तेजी के साथ दिन ब दिन पिघल रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में गर्मी की लहर और सामान्य तापमान में बढ़ोत्तरी की वजह से ग्लेशियर बड़े पैमाने पर पिघल रहे हैं। कश्मीर घाटी का सबसे बड़ा ग्लेशियर कोलाहोई ग्लेशियर है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कुछ दशकों से तापमान में बढ़ोत्तरी और सर्दियों में सामान्य से कम बारिश के कारण इसका लगभग 23 प्रतिशत हिस्सा खत्म हो गया है। वायु प्रदूषण, वनों की कटाई और सामान्य तापमान में तेजी, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के ऊंचे इलाकों में इन ग्लेशियरों के पिघलने के मुख्य कारण हैं। इस्लामिक यूनिवर्सिटी साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वीसी और ग्लेशियर एक्सपर्ट शकील रोमशू ने बताया कि भारतीय हिमालय में लगभग 33 हजार ग्लेशियर हैं। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में लगभग 18 हजार ग्लेशियर हैं। कुछ ग्लेशियर बड़े हैं, जैसे सियाचिन ग्लेशियर। इसकी लंबाई लगभग 900 वर्ग किलोमीटर और चौड़ाई लगभग 65 किलोमीटर है। पूरे हिमालय को एशिया का वाटर टावर कहा जाता है।
यह करीब 800 मिलियन लोगों को पानी पहुंचाता है। पिछले कुछ वर्षों से, दक्षिण एशिया में गर्मी की लहरें विशेष रूप से मार्च, अप्रैल और मई में एक सामान्य घटना बन गई है। तापमान असामान्य रूप से अधिक है। हम मौसम में बदलाव की निगरानी कर रहे हैं। जिसके कारण ग्लेशियरों में अभूतपूर्व पिघलन हुई है। जम्मू-कश्मीर की GDP के लिए बागवानी और कृषि प्रमुख भूमिका निभाते हैं। घाटी की अधिकांश कृषि और बागवानी भूमि ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फ पिघलने से नदियां भर जाती हैं। आंकड़ों से पता चला है कि कश्मीर घाटी ने दस वर्षों में 30,000 हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि खो दी।
मौसम विश्लेषक और पूर्वानुमानकर्ता फैजान आरिफ के अनुसार इससे एक दिन या महीनों में पानी की उपलब्धता पर असर नहीं पड़ेगा। लेकिन यह धीरे-धीरे होगा। इस बार सर्दियों में होने वाली बारिश में बदलाव सामान्य से कम रहा है। सर्दियों में होने वाली बारिश से जलाशयों में पानी भर जाता है और कम बारिश की वजह से ऐसा नहीं हो रहा है। शरद ऋतु में सबसे अधिक असर पड़ता है क्योंकि उस समय पानी सबसे कम हो जाता है। हम आम तौर पर 5-6 फ़ीट के आसपास रहते थे और अब वही जल स्तर शून्य से नीचे रहता है। जिसके चलते श्रीनगर और घाटी के कई दूसरे इलाकों में पहले ही पानी की कमी है।
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