वाराणसी: शिव नगरी काशी की गिनती दुनिया के प्राचीनतम् शहरों में होती है। यहां की मान्यता अपने आप में अनोखी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल पर बसी काशी के कण-कण में शंकर हैं। यहां गली-गली में आप को सनातन धर्म की छलक देखने को मिल जाएगी। इसी कड़ी में काशी की सैकड़ों साल पुरानी परम्परा के अनुसार, आज ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भगवान जगन्नाथ की स्नान यात्रा निकाली गई।
सुबह तड़के लगभग 5.15 बजे भगवान जगन्नाथ, बड़े भैया बलभद्र व बहन सुभद्रा की काष्ठ प्रतिमाओं को जगन्नाथ मंदिर के छत पर पहुंचाया गया। यहां छत के उत्तर पूर्व स्थित स्नान वेदी पर प्रतिमाओं को विधिवत विराजमान करा श्रृंगार किया गया। जिसके बाद अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर में जलाभिषेक का आयोजन किया गया। यहां बड़ी संख्या में भक्त पहुंचे।
मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ भक्तों के प्रेम स्वरूप अत्याधिक स्नान (जलाभिषेक) से बीमार पड़ गए। जिसके बाद भगवान प्रतीक रूप में एक पखवाड़ा तक विश्राम कर काढ़ा का भोग पीकर स्वस्थ्य होंगे।
मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ भक्तों के श्रद्धारूपी प्रेम में जमकर स्नान करते रहेंगे। यह सिलसिला आज शनिवार की रात 10 बजे तक चलेगा। इसके बाद भगवान के विग्रहों को पुन: मंदिर के गर्भगृह में लाया जाएगा। जहां अत्यधिक स्नान के कारण भगवान प्रतीक रूप से बीमार पड़ जाएंगे।
जगन्नाथ मंदिर के पुजारी के अनुसार भगवान एक पखवारे तक भक्तों को दर्शन नहीं देंगे। रविवार से भगवान को काढ़े का भोग लगाया जाएगा। प्रभु के प्रकट होने पर मंगला आरती स्तुति, भजन के साथ ही श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ होगा। इसके बाद आठ बजे नैवेद्य स्वरूप परवल का रस दिया जाएगा। एक पखवाड़े के बाद स्वस्थ होने के बाद भगवान श्रद्धालुओं को दर्शन देंगे।
6 जुलाई को मंदिर से भगवान जगन्नाथ की डोली यात्रा निकाली जाएगी। डोली यात्रा गाजे-बाजे के साथ अस्सी से निकलकर दुर्गाकुंड, नवाबगंज, राममंदिर, कश्मीरीगंज, खोजवां, शुंकुलधारा, बैजनत्था, कमच्छा से पंडित बेनीराम बाग, शापुरी भवन के लिए प्रस्थान करेगी। इसी के साथ 7 जुलाई से काशी का विश्व विख्यात रथयात्रा मेला शुरू हो जाएगा जो 9 जुलाई तक चलेगा।
गौरतलब है कि वाराणसी की सैकड़ों साल पुरानी परंपरा का निर्वह्न करने श्रद्धालु भोर से ही अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर में जुटने लगे। भक्तों ने अपने हाथों से प्रभु जगन्नाथ को रच रच कर गंगाजल से स्नान कराया। माना जाता है कि भक्तों के प्यार में भगवान इतना स्नान कर लेते हैं कि वह बीमार पड़ जाते हैं।