Varanasi News- आज 24 मई को पावन नगरी वाराणसी का स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। आपको बताते चलें कि वैदिक काल से भी पहले की इस नगरी की स्थापना कब हुई इसकी जानकारी का उल्लेख तो नही है, परन्तु उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ संपूर्णानंद ने 24 मई 1956 को इस शहर के स्थापना दिवस की आधिकारिक मान्यता प्रदान की थी। 1965 में प्रकाशित वाराणसी गजेटियर के दसवें पृष्ठ पर जिले का प्रशासनिक नाम वाराणसी किए जाने की तिथि अंकित है। आइए इस शहर की स्थापना और मान्यता के बारे में विस्तार से जानते हैं…
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उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के तट पर स्थित वाराणसी शहर की पहचान आदि काल से अंनत काल तक भगवान शिव की नगरी के रुप में होती रहेगी। हिन्दू धर्म में यह अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। हिंदी साहित्य के महान कवि गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं पर लिखा था। यहां की मां-गंगा आरती विश्व-विख्यात है। धार्मिक मान्यताओं और संस्कृतियों को समेटे हुए इस नगर के काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने के लिए देश‑विदेश से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। आपको बताते चलें कि इस शहर की स्थापना या शहर का जन्म कब हुआ, यह बताना मुश्किल है, लेकिन सरकारी दस्तावेजों के अनुसार 24 मई वाराणसी का स्थापना दिवस मनाया जाता है। बता दें कि भारतीय पंचांग में अंकित तिथि के अनुसार इस दिन वैसाख पूर्णिमा और चंद्रग्रहण का योग था।
स्कंद पुराण और मत्स्य पुराण में हैं वाराणसी का उल्लेख
बनारस बार के पूर्व महामंत्री और काशी के इतिहास पर शोध कर रहे अधिवक्ता नित्यानंद राय ने बताया कि पुराणों में वर्णित है, कि काशी नगर की स्थापना भगवान शिव ने लगभग 5000 साल पूर्व की थी। इसे कासिनगर और कासिपुर के नाम से भी जाना जाता था। सम्राट अशोक के समय में इसकी राजधानी का नाम पोतलि था। जातक कथाओं के अनुसार ही इसका एक नाम रामनगर भी है। एक ऐसा शहर जहां सब कुछ सुंदर और आनंददायक है। इसका उल्लेख स्कंद पुराण और मत्स्य पुराण में भी मिलता है।
काशी शब्द सबसे पहले अथर्ववेद से आया
अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने भी लिखा है, कि बनारस शहर इतिहास से भी पुराना शहर है। नित्यानंद राय ने बताया कि सबसे प्राचीन उपनिषद जाबालोपनिषद में काशी को अविमुक्त नगर कहा गया है। काशी शब्द सबसे पहले अथर्ववेद की पैप्पलाद शाखा से आया है, इसके बाद शतपथ में भी इसका उल्लेख है।
उल्लेखनीय…
वैदिक काल से वाराणसी को विभिन्न नामों से जाना जाता रहा है। 1965 में मुख्यमंत्री डॉ संपूर्णानंद द्वारा जारी किए गए गजेटियर में काशी, बनारस और बेनारस आदि नामों के प्रचलन में रहने के साक्ष्य मिले हैं, लेकिन इन नामों में प्रशासनिक तौर पर वाराणसी नाम रखा गया।