Prayagraj News- इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने कहा कि शादी में मिले उपहारों की एक लिस्ट बननी चाहिए और उस पर वर-वधू पक्ष के हस्ताक्षर भी जरुरी हैं। ऐसा करने से शादी के बाद होने वाले विवादों और केस-मुकदमों में मदद मिलेगी। न्यायालय ने अंकित सिंह व अन्य द्वारा दाखिल 482 दंड प्रक्रिया संहिता के केस की सुनवाई करते हुए यह अहम सलाह दी है। न्यायालय ने 23 मई सुनवाई के लिए लगाते हुए सरकार से हलफनामा मांगा है, कि वह बताएं कि दहेज प्रतिषेध अधिनियम के रूल 10 के अन्तर्गत कोई नियम प्रदेश सरकार ने बनाया है। वहीं न्यायालय ने कहा कि शादी के दौरान मिलने वाले गिफ्ट्स को दहेज के दायरे में नहीं रखा जा सकता।
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अदालत ने दहेज प्रतिषेध अधिनियम-1985, का हवाला देते हुए कहा कि इस कानून में एक नियम यह भी है कि वर एवं वधू को मिलने वाले उपहारों की भी सूची बननी चाहिए। इससे यह स्पष्ट होगा कि उन लोगों को क्या-क्या मिला था। इसके अलावा अदालत ने कहा कि शादी के दौरान मिलने वाले गिफ्ट्स को दहेज के दायरे में नहीं रखा जा सकता। जस्टिस विक्रम डी चौहान की बेंच ने कहा कि दहेज की मांग के आरोप लगाने वाले लोग अपनी अर्जी के साथ ऐसी लिस्ट क्यों नहीं लगाते। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि दहेज प्रतिषेध अधिनियम का उसकी पूरी भावना के साथ पालन होना चाहिए।
सुनवाई के दौरान साथ ही यह भी कहा गया कि यह नियम बताता है कि दहेज और उपहारों में क्या अंतर है। शादी के दौरान लड़का और लड़की को मिलने वाले गिफ्ट्स को दहेज में नहीं शामिल किया जा सकता। अदालत ने कहा कि अच्छी स्थिति यह होगी कि मौके पर मिली सभी चीजों की एक लिस्ट बनाई जाए। इस पर वर और वधू दोनों के ही साइन भी हों। इससे भविष्य में लगने वाले बेजा आरोपों को रोका जा सकेगा।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी दहेज-उत्पीड़न के बढ़ते मामलों को लेकर अहम है। किसी भी शादी के 7 साल बाद तक दहेज-उत्पीड़न का केस दायर किया जा सकता है। अक्सर ऐसे मामले अदालत में पहुंचते हैं, जिनमें विवाद किसी और वजह से होता है, लेकिन आरोप दहेज का लगा दिया जाता है। ऐसी स्थिति में अदालत का सुझाव अहम है।