Prayagraj News- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक पत्नी के जीवित रहते दूसरी
पत्नी रखने के आरोपी भास्कर प्रसाद द्विवेदी को बड़ी राहत दी है। आरोपी मिर्जापुर स्थित
राजकीय महाविद्यालय में संस्कृत विषय के प्रवक्ता हैं। आरोपी ने न्यायालय से अपील
की थी कि इस मामले में उसके निलम्बन आदेश को रद्द कर दिया जाए। न्यायालय ने एकलपीठ
के प्रवक्ता के निलम्बन आदेश को रद्द करने के आदेश की वैधता की चुनौती में राज्य
सरकार की विशेष अपील पर हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए खारिज कर दी है।
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इस मामले में
न्यायालय ने कहा कि नियम 10(2) के तहत छोटे दंड के अपराध के लिए याची
के निलम्बित करने का औचित्य नहीं है। विपक्षी प्रवक्ता को सफाई का मौक़ा दिया जाना
चाहिए। न्यायालय ने कहा कि नियम 4 के तहत निलंबन किया जा सकता है। नियम 10 में निलंबन का औचित्य नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी
कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति एस क्यू एच रिजवी की खंडपीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील को खारिज करते हुए दिया है।
आरोपी भास्कर प्रसाद द्विवेदी की पहली पत्नी ने इस
मामले की शिकायत की थी। जिसके बाद जिलाधिकारी की जांच में आरोप को सही पाया गया
था। जिसके बाद नियम 10(2) में आरोपी को निलम्बित कर दिया गया। इस
नियम में छोटा दंड दिए जाने की व्यवस्था की गई है। आरोपी ने निलम्बन आदेश को
चुनौती दी और कहा नैसर्गिक न्याय का उल्लघंन किया गया है। एकलपीठ ने निलम्बन आदेश
रद्द कर दिया और कहा कि कोई जांच रिपोर्ट नहीं है, जिस पर कहा जा सके
कि रिपोर्ट पर निर्णय लिया गया है।
वहीं सरकारी वकील का कहना है कि केवल निलम्बित करने
के आदेश पर न्यायालय के हस्तक्षेप करने का औचित्य नहीं है। जिस पर खंडपीठ ने कहा
बहस आकर्षक है किन्तु मेरिट पर नहीं है। माइनर पेनाल्टी पर भी जांच की जानी चाहिए।
आरोपी को सफाई का मौक़ा देना चाहिए। नियम 4
के तहत निलम्बन हो सकता है। नियम 10 में निलम्बित करने का औचित्य नहीं है।