डॉक्टर्स को भगवान का दर्जा दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि भगवान के बाद इस धरती पर अगर कोई मरते हुए इंसान को बचा सकता है तो वो सिर्फ डॉक्टर ही है। डॉक्टर बीमार व्यक्तियों का इलाज कर उन्हें स्वस्थ करता है। यही वजह है कि डॉक्टरी पेशे को बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में आजकल पुरुष डॉक्टरों के साथ-साथ महिला डॉक्टर भी कंधे से कंधा मिलाकर इलाज करती हुई नजर आती हैं। बड़ी संख्या में महिला डॉक्टर अपनी जिम्मेदारियां निभा रही हैं।
जब महिला डॉक्टर्स का जिक्र हो तो उसमें सबसे पहला नाम आनंदीबाई जोशी का आता है। आनंदीबाई जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर थीं, जिन्होंने मात्र 19 वर्ष की आयु में डॉक्टर बनकर इतिहास रच दिया था। उन्होंने ये उपलब्धि हासिल कर इतिहास के सुनहरे पन्नों में अपना नाम दर्ज कराया था।
बच्चे की मृत्यु के बाद डॉक्टर बनने का किया फैसला
आनंदीबाई जोशी का जन्म 31 मार्च 1865 को पुणे में हुआ था। मात्र 9 वर्ष की आयु में आनंदीबाई जोशी का विवाह उम्र में उनसे काफी बड़े गोपालराव से हुआ था। वह 14 वर्ष की उम्र में मां बन गई थीं। इस दौरान उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसकी सिर्फ 10 दिन बाद ही मृत्यु हो गई थी। इस घटना ने आनंदीबाई को अंदर से झकझोर कर रख दिया था। इसके बाद उन्होंने निश्चय किया कि वह डॉक्टर बनकर भारत में होने वाली ऐसी असमय मृत्यु को रोकेंगी।
अमेरिका जाकर मेडिकल की पढ़ाई पूरी की
आनंदीबाई के इस निर्णय में उनके पति गोपालराव ने उनका बखूबी साथ दिया। दंपति ने बिना किसी की परवाह किए हुए आगे बढ़ने का फैसला किया। आनंदीबाई 14 साल तक कभी स्कूल नहीं गई थीं,, लेकिन जब डॉक्टर बनने का फैसला किया, तब उनके पति ने उनका दाखिला एक मिशनरी स्कूल में कराया। इस तरह से उनकी पढ़ाई-लिखाई का सिलसिला चालू हुआ।
इसके बाद पति गोपालराव का तबादला कलकत्ता हो गया, तो आनंदीबाई को भी पति के साथ वहां जाना पड़ा। उन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी पढ़ना और बोलना सीखा।साल 1880 में उनके पति ने एक मशहूर मिशनरी,, रॉयल वाइल्डर को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में चिकित्सा की पढ़ाई के संबंध में जानकारी मांगी। यहां से जानकारी मिलने के बाद आनंदीबाई मेडिकल की पढ़ाई के लिए अमेरिका रवाना होने की तैयारी करने लगीं। हालांकि आनंदीबाई का स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं था, लेकिन फिर भी वह 1883 में कोलकाता के तट से शिप में सवार होकर न्यूयॉर्क के लिए निकल पड़ीं। उन्होंने पेंसिल्वेनिया के महिला विश्वविद्यालय में अपना दाखिला लिया।
21 साल की उम्र में एमडी की डिग्री हासिल की
उन्होंने 21 साल की उम्र में एमडी की डिग्री हासिल की। पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वह 1886 के अंत में भारत लौटीं,, तो उन्होंने कोल्हापुर रियासत के अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल के महिला वार्ड में प्रभारी चिकित्सक के तौर पर काम किया। मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद आनंदीबाई को बहुत कम दिनों तक लोगों की सेवा का अवसर मिला। 26 फरवरी 1887 को महज 22 साल की उम्र में तबीयत बिगड़ने से उनका निधन हो गया।
हालांकि कम उम्र में निधन की वजह से वह अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकी, लेकिन फिर भी उनका नाम इतिहास में दर्ज हो गया। वह महिलाओं के लिए एक बड़ी प्रेरणास्त्रोत हैं।