इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सोमवार को एक फैसले में कहा कि सरकारी कर्मी की विवाहित पुत्री भी मृतक आश्रित के रुप में नौकरी पाने की हकदार है। हाई कोर्ट ने कहा कि सेवा कानून के तहत मृतक आश्रित की नियुक्ति के लिए पुत्री की वैवाहिक स्थिति मायने नहीं रखती।
इस महत्वपूर्ण कानूनी व्यवस्था के साथ कोर्ट ने सहकारी ग्रामीण विकास बैंक में सहायक शाखा अकाउंटेंट की विवाहित पुत्री को दो माह में मृतक आश्रित के रुप में योग्य मानते हुए सेवा में लेने पर गौर करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही बैंक प्रशासन के उस आदेश को रद्द कर दिया गया, जिसके तहत मृतक कर्मी की पुत्री को विवाहित होने की वजह से नियम का हवाला देकर सेवा में रखने से इंकार कर दिया गया था।
हाईकोर्ट ने सहकारी समितियों के कर्मचारियों की सेवा संबंधी 1975 के रेगुलेशन 104 के नोट में लिखा शब्द “अविवाहित” को निरस्त कर याचिका मंजूर कर ली है। जज देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और जज ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने यह फैसला नीलम देवी की याचिका पर किया है। याचिका में विवाहित बेटी को मृतक आश्रित के रुप में सेवा में रखने से इंकार करने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के पिता की सेवा में रहते हुए मृत्यु हो गई थी। इसपर याची ने मृतक आश्रित के रुप में सेवा में नियुक्ति पाने के लिए आवेदन किया था। जिसे 29 जनवरी 2021 को यह कहते हुए बैंक के महाप्रबंधक ने रेगुलेशन 104 का हवाला देकर खारिज कर दिया कि मृतक आश्रित के रुप में सिर्फ अविवाहित पुत्री को सेवा में लिया जा सकता है। इस पर याची ने रेगुलेशन के इस अविवाहित शब्द को निरस्त करने की भी गुहार कोर्ट से की थी।