ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक का हाल ही में राम कथा में शामिल होना और भगवान राम के प्रति आस्था की सार्वजनिक अभिव्यक्ति अनुकरणीय है। यह साफ है कि जो जितने अंश में ही हिन्दू है, उसका उतने अंश में ही स्वागत हो। ऋषि सुनक ने न केवल अपने देश ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में राम कथा में “जय सिया राम” का उद्घोष किया बल्कि वैश्विक समस्याओं से निपटने के लिये हिन्दू धर्म के सहारे कार्य करते रहने का प्रण भी लिया। आज पूरे यूरोप में हिन्दुओं और हिंदू धर्म को करीब से जानने की जिज्ञासा बढ़ती जा रही है। राम कथा के बाद कई घंटो तक ब्रिटिश प्रधानमंत्री सुनक भगवान श्रीराम के प्रसाद का वितरण करते रहे। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में मुरारी बापू की राम कथा में ऋषि सुनक ने भाग लेकर सही संदेश दिया कि वे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के साथ-साथ एक आस्थावान सनातनी हिंदू भी हैं। कई दशकों पहले सुनक का परिवार भारत छोड़कर अफ्रीका होता हुआ इंग्लैंड में जाकर बस गया था।
पाश्चात्य संस्कृति का इस परिवार पर कोई बुरा असर नहीं पड़ा। इसके उलट भारत में दो लाइन पढ़ लेने वाला सबसे पहले राम और रामायण पर ही सवाल उठाना शुरू कर देता है। यह महज सस्ती लोकप्रियता के लिए किया जाता है। यह किसी दूसरे धर्म में कभी नहीं होता। वहां धर्मगुरु की बात पत्थर की लकीर हो जाती है। भले ही लाख बुराइयां क्यों न हों। मगर हम सनातनी तो अपनी ही जड़ खोदने में लगे रहते हैं। सुनक ने हालांकि खुलकर अपने को हिंदू बताया पर उनपर कभी किसी ने यह आरोप नहीं लगाया कि वे हिंदुओं के प्रति कोई नरम रवैया रखते हैं।
दरअसल राम सिर्फ भारत के नहीं हैं। उनके प्रति सारा संसार आस्था का भाव रखता है। राम तो सारी मानव जाति के हैं। वे कण-कण में हैं। संसार के कई देश राम से अपने को जोड़ते हैं। राम उनके आदरणीय हैं। अयोध्या के कोरिया से 2000 वर्ष पुराने रिश्ते बताए जाते हैं। वहां भी एक अयोध्या है जिसे “अयुता” कहा जाता है। रामकथा विभिन्न देशों में विभिन्न रूपों में प्रचलित है। उन सबसे भारतीयों का भावनात्मक लगाव होना स्वाभाविक है। इस्लामिक देश इंडोनेशिया की संस्कृति पर भी रामायण की गहरी छाप है। इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप का नामकरण सुमित्रा के नाम पर हुआ था। इंडोनेशिया के जावा शहर की एक नदी का नाम सेरयू है।
मुस्लिम देश इंडोनेशिया की रामलीला के बारे में अकसर लिखा जाता है। जब वहां के राष्ट्रपति सुकर्णो के विरुद्ध साजिश रची गयी तो बीजू पटनायक (ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के पिता) अपने विमान से उन्हें बचा कर लाए थे। सुकर्णो की बेटी का जन्म हुआ तो श्री पटनायक ने उनका नामकरण सुकर्णपुत्री मेघावती किया था। इसी नाम को वहां उन्हें लोकप्रियता मिली और अपने पिता की भांति वह भी सत्ता प्रमुख निर्वाचित हुईं।
थाईलैंड में राजा को राम ही कहा जाता है। उसके नाम के साथ अनिवार्य रूप से राम लगाता है। राज परिवार अयोध्या नामक शहर में ही रहता है l ये स्थान बैंकॉक के करीब है। क्या ये कम हैरानी की बात है कि बौद्ध होने के बावजूद थाईलैंड के लोग अपने राजा को राम का वंशज होने के चलते विष्णु का अवतार मानते हैं? इसलिए थाईलैंड में एक तरह से आज भी राम राज्य कायम है l
हिन्दू प्रतीकों और संस्कृति को देखना-समझना है तो थाईलैंड से उपयुक्त राष्ट्र कोई नहीं हो सकता। दक्षिण पूर्व एशिया के इस देश में हिन्दू देवी-देवताओं और प्रतीकों को आप चप्पे-चप्पे पर देखते हैं। थाईलैंड में 90 प्रतिशत आबादी बौद्ध धर्मावलंबी है। फिर भी इधर का राष्ट्रीय चिह्न गरुड़ है। हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं में गरुड़ को विष्णु की सवारी माना गया है। गरुड़ के लिए कहा जाता है कि वह आधा पक्षी और आधा पुरुष है। उसका शरीर इंसान की तरह का है, पर चेहरा पक्षी से मिलता है। उसके पंख भी हैं। इसी तरह इंडोनेशिया की राष्ट्रीय विमान सेवा का नाम भी गरुड़ एयरलाइंस है।
कोई भी हिंदू , चाहे वह दुनिया के किसी कोने में भी रहता हो, वह राम के बिना संसार की कल्पना भी नहीं करता है। सुनक को पता ही होगा कि सारा भारत राम को अपना आराध्य मानता है। भारत के सबसे बड़े पौराणिक नामों में राम भी हैं। उनके बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी प्राय: सभी को, कम से कम दो में एक भारतीय को तो होगी ही। उनके विचार व कर्म, या उन्होंने कौन-से शब्द कब कहे, उसे विस्तारपूर्वक दस में एक तो जानता होगा। कभी सोचिए कि एक दिन में भारत में कितनी बार यहां की जनता प्रभु राम का नाम लेती है। यह आंकड़ा तो अरबों-खरबों में पहुंच जाएगा। भारत राम का नाम तो लेता रहेगा। राम का नाम भारत असंख्य वर्षों से ले रहा है और लेता ही रहेगा।
गांधी जी भारत में रामराज्य की स्थापना देखना चाहते थे। गांधी जी ने ऐसे रामराज्य का स्वप्न देखा था जो पवित्रता और सत्यनिष्ठा पर आधारित हो। राम तो हर भारतीय के ईश्वर हैं। भारत तो ‘रामराज्य’ स्थापित करना चाहता है। वे मात्र हिन्दू धर्म के भगवान ही नहीं हैं । बल्कि, वे भारत की मिट्टी की सांस्कृतिक धरोहर हैं।
राम का नाम भारत से बाहर जा बसे करोड़ों भारतवंशियों को एक-दूसरे से जोड़ता है। राम आस्था के साथ सांस्कृतिक चेतना के भी महान दूत हैं। म्यांमार में भी राम हैं। यहां का पोपा पर्वत औषधियों के लिए विख्यात है। माना जाता है कि लक्ष्मण के उपचार के लिए पोपा पर्वत के ही एक भाग को हनुमान जी उखाड़कर ले गये थे। वे लोग उस पर्वत के मध्यवर्ती खाली स्थान को दिखाकर पर्यटकों को यह बताते हैं कि पर्वत के उसी भाग को हनुमान उखाड़ कर लंका ले गये थे। अत्यंत मृदुभाषी सुनक जी-20 देशों के राजधानी नई दिल्ली में होने वाले शिखर सम्मेलन में भाग लेने आ रहे हैं। निश्चित रूप से उन्हें उस दौरान भगवान राम से जुड़ा जरूरी साहित्य भी भेंट किया ही जाएगा।
(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)