सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को देश भर में सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौतों पर गंभीर चिंता जताई है। जस्टिस एस रविंद्र भट्ट की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ‘सीवर सफाई के दौरान मौत होने पर परिजनों को 30 लाख रुपये का मुआवजा देना होगा। इसके अलावा सीवर सफाई के दौरान स्थायी दिव्यांगता की स्थिति में न्यूनतम मुआवजे के रूप में 20 लाख रुपये का भुगतान करना होगा। कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि ‘केंद्र और राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा पूरी तरह से खत्म हो जाए।’
सरकारी एजेंसियों को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी घटनाएं न हों – SC
कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि ‘सरकारी एजेंसियों को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी घटनाएं न हों। याचिका में मांग की गई थी कि केंद्र और राज्य सरकारें मैला ढोने वालों और सीवर सफाई में काम करने वाले लोगों की वास्तविक संख्या बताए। याचिका में मांग की गई थी कि 1993 से लेकर अब तक ऐसे मामलों में मृत लोगों की संख्या बताई जाए, ताकि ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज की जा सके। याचिका में सिर पर मैला ढोने और सीवर में काम के लिए रखने वाली एजेंसियों, ठेकेदारों और दूसरे लोगों के खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश देने की भी मांग की गई थी।
Supreme Court ने 2014 में दिया था एक एतिहासिक फैसला
बता दें सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 2014 में एक एतिहासिक फैसले में हाथ से (मैन्युल तरीके से) कचरे और गंदगी की सफाई रोकने के लिए तमाम निर्देश जारी किए थे। साथ ही कहा था कि सीवर की खतरनाक सफाई के लिए किसी मजदूर को न लगाया जाए। बिना सेफ्टी के सीवर लाइन में मजदूर को न उतारा जाए। कानून का उल्लंघन करने वालों को सख्त सजा का भी प्रावधान किया गया था।
उस दौरान सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी. सथासिवम की बेंच ने देश भर के तमाम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वह 2013 के उस कानून को लागू करे जिसमें हाथ के कचरा उठाने की प्रथा को खत्म करने के लिए कानूनी प्रावधान किया गया और पीड़ितों के पुनर्वाश के लिए प्रावधान किया गया था।
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