धर्मनगरी वाराणसी में धनतेरस पर्व से मां अन्नपूर्णा की स्वर्णमयी प्रतिमा के कपाट आम लोगों के लिए खुलेंगे। इस बार 10 नवम्बर से 14 नवम्बर तक पूरे पांच दिन श्रद्धालु मां अन्नपूर्णा की स्वर्णमयी प्रतिमा का दर्शन कर सकेंगे। पूरे पांच दिन तक दरबार में भक्तों में खजाने के रूप में सिक्कों का वितरण किया जाएगा।
मंगलवार को इस सम्बन्ध में मंदिर के महंत शंकर पुरी ने बांसफाटक स्थित काशी अन्नपूर्णा क्षेत्र के सभागार में पांच दिनों के कार्यक्रमों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि धनतेरस को निर्धारित समय से एक घंटे पहले ही मंदिर के कपाट खोल दिए जाएंगे। पांच दिनों तक श्रद्धालु स्वर्णमयी अन्नपूर्णा, मां भूमि देवी, लक्ष्मी और रजत महादेव के दर्शन कर सकेंगे। महंत शंकर पुरी ने बताया कि धनतेरस पर्व पर शुभ योग से देश में समृद्धि रहेगी और कोष भरा रहेगा। अभिजित मुहूर्त में अपराह्न में माता का पूजन व आरती के बाद खजाने की पूजा की जाएगी।
उन्होंने कहा कि वर्ष में सिर्फ चार दिन भक्तों को स्वर्णमयी अन्नपूर्णा की प्रतिमा का दर्शन मिलता था लेकिन इस साल पांच दिन दर्शन होगा। उन्होंने बताया कि 14 नवम्बर को मां के दरबार में अन्नकूट महोत्सव के दिन लड्डूओं की झांकी सजेगी। रात 11.30 बजे माता की महाआरती होगी। इसके पश्चात एक वर्ष के लिए स्वर्णमयी अन्नपूर्णा का कपाट बंद कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि भक्तों को बांसफाटक से गेट नंबर एक ढुंढिराज से मुख्य द्वार अन्नपूर्णा मंदिर में प्रवेश मिलेगा। श्रद्धालु बाएं हाथ की तरफ बनी अस्थायी सीढ़ियों से होते हुए स्वर्णमयी माता का दर्शन कर कालिका गली होकर निकलेंगे।
मंदिर के प्रबंधक काशी मिश्रा ने बताया कि सुरक्षा के लिए कैमरों की संख्या बढ़ा दी गई है। कंट्रोल रूम के जरिए निगरानी की जाएगी। जगह-जगह सेवादार तैनात रहेंगे। गौरतलब हो कि मां अन्नपूर्णेश्वरी की स्वर्ण प्रतिमा की प्राचीनता का उल्लेख भीष्म पुराण व अन्य शास्त्रों में भी वर्णित है। कथा है कि राजा दिवोदास के कालखंड में काशी में भयंकर अकाल पड़ा था। अकाल से छुटकारा पाने के लिए राजा दिवोदास ने धनंजय नामक ब्राह्मण से मां अन्नपूर्णा की साधना को कहा। ब्राह्मण ने कामरूप जाकर मां की साधना की। लंबे समय तक दर्शन न मिलने से ब्राह्मण दुखी हो गया और अपना प्राण त्यागने के लिए तालाब में छलांग लगा दी। भक्त के भाव को देख मां ने स्वर्णिम रूप में प्रकट हो दर्शन दिया। उनके आग्रह पर देवी अन्नपूर्णा सदा के लिए काशी की होकर रह गईं।
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