Uttar Pradesh News:- अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर के
गर्भ ग्रह में प्राण-प्रतिष्ठा का समय आ चुका। राम भक्तों के 500 सालों के लम्बे
संघर्ष और इंतजार का समय खत्म होने वाला है। 1946 में बिजनौर के एक छोटे से कस्बे में
जन्में चंपत राय युवास्था
से ही राम मंदिर निर्माण आंदोलन में सक्रिय रूप से
जुड़े रहे और अपना पूरा जीवन प्रभु श्रीराम के चरणों में समर्पित कर दिया। आइए जानते हैंं, राम मंदिर निर्माण आंदोलन उनके समर्पण के बारे में…
युवास्था से थे RSS की
विचारधारा से प्रभावित
चंपत राय उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले
के नगीना कस्बे के सरायमीर मोहल्ले के मूलनिवासी हैं। चंपत राय अपने 10 भाई – बहनों में
दूसरे नंबर पर हैं। उनके पिता का नाम रामेश्वर प्रसाद
बंसल और माता का नाम सावित्री देवी है। उनका जन्म 18 नवंबर 1946 में हुआ
था। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता रहे। उनके पिता भी राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए थे। चंपत राय युवास्था से
ही RSS की विचार धारा से काफी प्रभावित थे।
1991 में RSS ने दी अयोध्या की जिम्मेदारी
चंपत राय ने राम मंदिर निर्माण
में अपना पूरा जीवन लगा दिया। चंपत राय विश्व हिन्दू परिषद के उपाध्यक्ष
हैं और आजीवन अविवारित रहे। राम मंदिर के निर्माण में चंपत राय की अहम भूमिका रही है।
मंदिर के निर्माण के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया। फिजिक्स प्रोफेसर होने
के साथ वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता रहे। संघ से होने की वजह से आपातकाल में प्रोफेसर
चंपत राय को जेल जाना पड़ा। वह 18 महीने जेल में रहे। 1980-1981 में उन्होंने
नौकरी से इस्तीफा दे दिया और RSS के प्रचारक बन गए। देहरादून और
सहारनपुर में उन्होंने प्रचारक का दायित्व सम्भाला। 1985
में मेरठ में प्रचारक रहे। 1986 में विहिप प्रांत संगठन मंत्री बने। 1991 में चंपत
राय को क्षेत्रीय संगठन मंत्री बनाकर अयोध्या भेजा गया। 1996 में विहिप ने उन्हें
संगठन का केन्दीय मंत्री बनाया। 2002 में संयुक्त महामंत्री और फिर उनको अंतरराष्ट्रीय
महामंत्री बनाया गया। चंपत राय को यूं ही श्रीराम मंदिर
ट्रस्ट क्षेत्र का महासचिव नहीं बना दिया गया है। उन्होंने रामलला के लिए उनके
श्रीचरणों में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित किया है। प्यार से उन्हें लोग ‘रामलला का पटवारी’ भी कहते हैं। यह
व्यक्ति सनातन का योद्धा है।
छात्रों के बीच लोकप्रियता से आपातकाल
में भी गिरफ्तार नही कर सकी पुलिस, खुद किया था सलेंडर
वर्ष 1975 के दौर में बिजनौर के धामपुर
के आरएसएम डिग्री कॉलेज में एक युवा
प्रोफेसर के पद पर थे। संघ से जुड़े होने के कारण इंदिरा गांधी द्वारा थोपे गए
आपातकाल में बच्चों को फिजिक्स पढ़ाते समय पुलिस उनको गिरफ्तार करने पहुंची थी। अपने
छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय होने के कारण पुलिस चंपत राय को गिरफ्तार नही कर
पायी। पुलिस को वहां से बैरंग लौटना पड़ा। पुलिस को भी इस बात का अनुमान था, कि छात्रों का कितना अधिक प्रतिरोध हो सकता है। तब प्रोफ़ेसर
चंपत राय ने पुलिस अधिकारियों से कहा कि आप अभी वापस जाइये। मैं बच्चों की क्लास खत्म कर खुद ही थाने आ जाऊँगा, उनकी बात
मान कर पुलिस वाले लौट गए। क्लास खत्म कर बच्चों को शांति से घर जाने के लिए कहकर
चंपत राय घर पहुंचे। माता पिता से आशीर्वाद लिया और थाने पहुंच गए। वह 18 महीनों तक जेल में रहे।
6 दिसंबर को राम भक्तों के
साथ रचा इतिहास
6 दिसंबर 1992 को मंच से बड़े-बड़े दिग्गज
नेता जब कारसेवकों को अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे थे, उन्हें तमाम निर्देश दिए जा रहे
थे। बाबरी ढांचे को नुकसान न पहुंचाने की कसमें दिलाई जा रहीं थीं, उस समय चंपत राय युवाओं के साथ मंच से कुछ दूरी पर थे। जानकारों
का कहना है कि एक पत्रकार ने चंपत राय से जब पूछा कि ‘अब क्या होगा?’ उन्होंने हंस कर उत्तर
दिया ‘यह राम की वानर सेना है, सीटी की आवाज पर पी टी
करने यहां नहीं आयी। यह जो करने आयी है, करके ही जाएगी। इतना कहकर उन्होंने एक बेलचा अपने हाथ में लिया, और बाबरी ढांचे की ओर बढ़
गये, फिर सिर्फ जय श्री राम का
नारा गूंजा और इतिहास रचा गया।
जन्मभूमि की कानूनी लड़ाई लड़ने वाले वकीलों को दिए थे सबूत
राम मंदिर आन्दोलन के दौरान चंपत राय अयोध्या में
पूरी तरह से सक्रिय रहे। बाबरी ध्वंस के मुकदमों में कल्याण सिंह के बाद चंपत राय
ने ही खुलकर उस घटना का दायित्व खुद पर लिया है। बाबरी ध्वंस के पूर्व से ही चंपत राय
ने राम मंदिर पर डॉक्यूमेंटल एविडेंस जुटाने शुरू कर दिए थे। लाखों पेज के
डॉक्यूमेंट पढ़े और सहेजे। ग्रंथों को पढ़ा और संभाला। उनका घर इन कागजातों से भर
गया। साथ ही हर जानकारी उन्हें कंठस्थ भी हो गई। के परासरण और अन्य साथी वकील जब
जन्मभूमि की कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरे, तो उन्हें सबूत देने वाले यही व्यक्ति थे।
धर्म को लेकर तपस्वी और विद्वान
बाबरी ध्वंस के मुकदमों में कल्याण सिंह
के बाद चंपत राय ने ही अदालत और जनसामान्य दोनों के सामने सदैव खुलकर उस घटना का
दायित्व अपने ऊपर लिया है। चम्पत राय कह चुके हैं, कि जैसे ही राममंदिर का शिखर देख लेंगे। युवा पीढ़ी को मथुरा की जिम्मेदारी निभाने को प्रेरित करने में
जुट जाएंगे। चंपत राय धर्म की छोटी से छोटी चीजों का ध्यान रखने वाले तपस्वी और
विद्वान हैं।