Ayodhya:- अयोध्या में भगवान
श्रीराम के मंदिर के प्रवेश द्वार पर हनुमान जी, गज, सिंह, और गरुड़ जी की मूर्तियां स्थापित कर दी गयीं हैं। यह
मूर्तियां मंदिर के प्रवेशद्वार की शोभा को बढ़ा रही हैं। इन मूर्तियों को राजस्थान के
हल्के गुलाबी रंग के बलुआ पत्थर से बनाया गया है। बादामी रंग का यह बलुआ पत्थर अपनी
सुन्दरता के कारण काफी विख्यात है और राजस्थान में बंसी पाल सेंड स्टोन के नाम से
मशहूर है।
आपको बतातें चलें कि बलुआ पत्थर का 90 फीसदी से अधिक भंडार
राजस्थान में पाया जाता है। जो कोटा, जोधपुर, चित्तौड़गढ़, बीकानेर, भरतपुर, धौलपुर, सवाई-माधोपुर, बूंदी, झालावाड़, पाली, शिवपुरी, खाटू और जैसलमेर जिलों में फैला हुआ है। बलुआ पत्थर के खनन
और निर्यात को लेकर भारत भी अग्रणी देशों में शुमार है।
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जानिए भारत के किन-किन मंदिरों, गुफाओं
और भवनों में हुआ है सेंड स्टोन पत्थर का प्रयोग
हिन्दु संस्कृति में बादामी रंग के सेंड स्टोन पत्थर को काफी महत्व
दिया गया है। पुरी में प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियां गोंडवाना बलुआ
पत्थर से बनाई गई हैं। भुवनेश्वर में अन्य मंदिरों के साथ-साथ खोंडागिरी और
उदयगिरि में भी पास की गुफाओं में जो मूर्तियां बनायी गईं हैं, वह भी गोंडवाना
बलुआ पत्थर से बनाई गई हैं। इन्हें अथगढ़ बलुआ पत्थर भी कहा जाता है। जयपुर के हवामहल
के निर्माण में भी इसी का उपयोग किया गया है। इसके अलावा शहर में अन्य स्मारकों की
रंग-सज्जा को ध्यान में रखते हुए निर्माण कार्य लाल और गुलाबी रंग के बलुआ पत्थर से
किया गया है। इसलिए जयपुर शहर को गुलाबी शहर कहा जाता है। इस शहर का निर्माण महाराजा
सवाई प्रताप सिंह ने 1799 में कराया था। भारत के सार्वजनिक
भवनों को भी इसी पत्थर से बनाया गया है, जिसमें संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, भारत का सर्वोच्च न्यायालय और चेन्नई में मद्रास उच्च
न्यायालय शामिल है।
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इन देशों में होता है इसका निर्यात
जानकारों से मिली जानकारी के अनुसार बालुकाश्म या
बलुआ पत्थर एक अनोखी तरह की एक दृढ़ शिला है। यह मुख्य रूप से बालू के कणों का
दबाव पाकर जमने से बनती है और किसी योजक पदार्थ से जुड़ी होती है। बालू के समान
इसकी रचना में भी अनेक पदार्थ विभिन्न मात्रा में होते हैं, लेकिन इसमें
अधिकांश स्फटिक ही होता है। इधर राजस्थान बलुआ पत्थर अपने नियमित समान आकार, उपयुक्त प्रकृति
और स्थायित्व के कारण राजस्थान ही नहीं बल्कि उत्तरी भारत में भी बड़े पैमाने पर
प्रयोग में आता है। इसका उपयोग कनाडा,
जापान और मध्य
पूर्व के देशों में भी किया जाता है। इस बलुआ पत्थर का इन देशों में निर्यात होता
है।