लखनऊ; इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने रामचरितमानस की प्रतियां फाड़कर जलाने के मामले में पुलिस द्वारा की गई रासुका की कार्रवाई को उचित बताया है। बता दें कि 2023 में कुछ लोगों ने रामचरितमानस की प्रतियां फाड़कर जलाई थी जिसको लेकर लखनऊ पुलिस ने उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून जैसी गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया था। पुलिस की कार्रवाई को चुनौती देने के लिए दोनों आरोपियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में याचिका डालकर रासुका को खारिज करने की मांग की थी।
मामले पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा और न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार जौहरी की खंडपीठ ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्रवाई करने को उचित बताया है। दोनों जजों ने यह आदेश आरोपी देवेंद्र प्रताप यादव व सुरेश सिंह यादव की याचिकाओं को खारिज करते हुए दिए है। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने रामचरितमानस की प्रतियां जलाकर जिस तरह का व्यवहार किया, उससे हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं भड़क सकती थीं।
कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि भगवान राम के जीवन के घटनाक्रम से संबंधित धर्म ग्रंथ का जिस प्रकार अपमान किया, उससे समाज में आक्रोश उत्पन्न होना स्वाभाविक है। इसीलिए प्रशासन द्वारा आरोपियों पर रासुका लगाना उचित था।
यह भी पढें: देवरिया हत्याकांड : मृतक प्रेम यादव का घर ढहाने पर उच्च न्यायालय ने लगाई रोक
उल्लेखनीय है कि 2023 में सतनाम सिंह लवी ने पीजीआई थाने में इस मामले को लेकर रिपोर्ट दर्ज कराई थी। सतनाम सिंह लवी ने आरोप लगाया था कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य की शह पर देवेंद्र प्रताप यादव व अन्य ने वृंदावन कॉलोनी में रामचरितमानस की प्रतियां फाड़कर जला दीं थीं। जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था, जिसके बाद उन पर रासुका के तहत कार्रवाई की गई थी। दोनों याचिकाकर्ताओं ने अलग-अलग याचिका डालते हुए कोर्ट से यह गुहार लगाई थी कि उन के ऊपर रासुका के तहत की कई कार्रवाई राजनीति से प्रेरित है। लेकिन हाई कोर्ट ने याचिका को रद्द कर दिया।