Uttar Pradesh News- 500 वर्षों तक की प्रतीक्षा करने और लाखों
लोगों के बलिदान और कई पीढ़ियां गुजर जाने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपनी
जन्मस्थली अयोध्या में भव्य व दिव्य मंदिर में 22 जनवरी को विराजमान होंगे। इसको
लेकर श्रद्धालुओं में उत्साह है। झांसी के
प्रत्यक्षदर्शी कारसेवक 87 वर्षीय चुन्नाबाबू गुप्ता ने बताया कि विवादित ढांचे को गिराने में पीएसी के जवानों का भी अहम
योगदान रहा है।
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ढांचा तो पीएसी के जवानों के तंबुओं में
रखे औजारों से गिराया गया था
झांसी के प्रत्यक्षदर्शी कारसेवक 87 वर्षीय
चुन्नाबाबू गुप्ता बताते हैं, कि जिस समय बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाया गया था, उस समय झांसी के तीन कारसेवक वहां उपस्थित थे। उनमें से एक वे
स्वयं भी थे। उनके अलावा स्वर्गीय भगवान सहाय दुबे, जो कि एक रिटायर्ड बाबू थे तथा
देवी सिंह चाहर भी वहां पर थे। इन्होंने बताया कि यह तो सभी जानते हैं, कि
विवादित ढांचा कारसेवकों के द्वारा ढहा दिया गया था, लेकिन यह शायद ही कोई जानता होगा, कि यह
कार्य अपने सांसारिक दायित्व का निर्वहन करते हुए, अपने धार्मिक दायित्व का बोध
रखने वाले पीएसी जवान कारसेवकों ने भी किया था। ढांचा तो पीएसी के जवानों के
तंबुओं में रखी सब्बलों व अन्य औजारों से गिराया गया था। यही नहीं ढांचे को ढहाने
के साथ ही सादी वर्दी में पीएसी के जवान कारसेवकों ने खूब नृत्य भी किया था।
चुन्नाबाबू गुप्ता बताते हैं कि राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के एक स्वयंसेवक होने के नाते वे आज भी पांचजन्य के जिला प्रतिनिधि
हैं। उन्होंने बताया कि उस स्थान की सुरक्षा व्यवस्था के लिए टेंट लगाकर पीएसी के
जवान पहरा देते हुए, सांसारिक दायित्व का निर्वहन कर रहे थे। तो दूसरी ओर सनातन
संस्कृति के दायित्व का निर्वहन करते हुए उन्होंने सादी वर्दी में अपने ही टेंट
में रखे औजारों से ढांचा ढहाने में कारसेवकों की सहायता भी की थी। उन्होंने बताया कि
जब विवादित ढांचे का सबकुछ समाप्त हो गया, तो वहां पर एक टेंट लगाया गया और फिर
बाद में इस टेंट में रामलला विराजमान हुए।
जेल से कारसेवकों की चिट्ठियां पहुंचाते
थे कारसेवकों के घर
उन्होंने बताया कि कारसेवा तो वह शुरू
से ही करते आ रहे हैं। यहां तक कि ताला खोलने के समय भी वह अयोध्या गए थे। उस समय
वह 8 बस्तियों के
प्रमुख का दायित्व भी निभा रहे थे। 1990
और 1992 की कारसेवा के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें जेल
नहीं भेजा गया था, क्योंकि सामाजिक समरसता का एक उदाहरण देखकर उनके नगर चिरगांव का
थानेदार प्यारेलाल अहिरवार, उनका बहुत बड़ा प्रशंसक बन गया था। और इसीलिए उन्हें
जेल नहीं भेजा गया। उन्होंने बताया कि चिरगांव से कुल 17 लोग जेल
गए थे और उन्होंने उस समय परिवार चलो अभियान के अन्तर्गत, जो कारसेवक जेल गए थे, उनकी चिट्ठियां लाने व ले जाने का काम किया था।