Prayagraj News- गुरुवार
को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि कानून में निहित अधिकार को भूतलक्षी कानून
से छीना नहीं जा सकता है। सहायक अध्यापक की सेवानिवृत्ति के समय तदर्थ सेवाओं को
पेंशन निर्धारण के लिए क्वालीफाइंग सेवा में शामिल करने का नियम रहा है, तो बाद
में नियम संशोधित कर पूर्व की अवधि से लागू करने के कारण इस अधिकार को छीना नहीं
जा सकता।
न्यायालय ने तदर्थ सेवा जोड़कर सेवानिवृत्त
सहायक अध्यापक के पेंशन निर्धारित करने के एकलपीठ के आदेश को सही माना और राज्य
सरकार की विशेष अपील को निरस्त कर दी है। न्यायालय ने परिवीक्षा अवधि के बाद निरंतर सेवा
करने के बाद सेवानिवृत्त अध्यापक को स्थाई अध्यापक न मानने के राज्य सरकार के तर्क
को भी अस्वीकार कर दिया है।
न्यायालय में सरकार की तरफ से कहा गया कि याची विपक्षी
की नियमित की गई सेवा, स्थाई नहीं की गई थी। इसलिए अस्थाई अध्यापक को पेंशन पाने
का अधिकार नहीं है। जिसे न्यायालय ने नहीं माना। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार
मिश्र तथा न्यायमूर्ति एस क्यू एच रिजवी की खंडपीठ ने राज्य सरकार की एकलपीठ के
फैसले के खिलाफ दाखिल विशेष अपील को निरस्त करते हुए दिया है।
बता दें कि अमरोहा जिले में विपक्षी महेश चंद्र
शर्मा की किसान इंटर कालेज में अंशकालिक रिक्त पद पर तदर्थ रूप में 14 जनवरी 1993 को
नियुक्ति की गई थी। बाद में अक्टूबर 2016 के आदेश के अन्तर्गत 22 मार्च 2016 से
संयुक्त शिक्षा निदेशक मुरादाबाद द्वारा उन्हें नियमित कर दिया गया और वह 31 मार्च
2020 को सेवानिवृत्त हो गया।
पेंशन निर्धारित करने के लिए याची की तदर्थ सेवा जोड़ने
की मांग अस्वीकार कर दी गई है। उच्च न्यायालय ने इस आदेश को रद्द कर तदर्थ सेवा
जोड़कर पेंशन निर्धारित करने का निर्देश दिया है। उच्च न्यायालय के इस आदेश को चुनौती
दी गई थी। याची विपक्षी अधिवक्ता का कहना था कि सरकार अपने कानून व नियम को मानने
के लिए बाध्य है। भूतलक्षी कानून से विधिक अधिकार नहीं छीने जा सकते।