लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक बड़ा फैसला आया है। इसके अनुसार इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगा दी गई है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। वोटर्स को पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानने का हक है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि बॉन्ड खरीदने वालों की लिस्ट सार्वजनिक की जाए।
ये भी पढ़ें- ज्ञानवापी के व्यासजी तलगृह में पूजा को लेकर सुनवाई पूरी, इलाहाबाद HC ने फैसला सुरक्षित रखा
SBI को 3 हफ्तों में देनी होगी जानकारी
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग की जानकारी उजागर न करना मकसद के विपरीत है। एसबीआई को 12 अप्रैल 2019 से लेकर अब तक की जानकारी को सार्वजानिक करना होगा। एसबीआई को ये जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी और आयोग इस जानकारी को साझा करेगा। SBI को तीन हफ्ते के अंदर ये जानकारी देने को कहा गया है।
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड ?
साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत हुई थी। इसे लागू करने के पीछे कारण ये था,, कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा। इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक पार्टियों को चंदे के रूप में देती थीं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड की रकम को बैंक से हासिल करते थे।
बता दें कि एसबीआई की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड के लिए अधिकृत किया गया था। ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की थीं।
क्यों जारी किया गया था इलेक्टोरल बॉन्ड
चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने साल 2018 में इस इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की थी। इन इलेक्टोरल बॉन्ड्स को फाइनेंस एक्ट 2017 के तहत लाया गया था। ये बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते थे। इसके लिए ग्राहक,, बैंक शाखा में जाकर या ऑनलाइन उसकी वेबसाइट पर जाकर इसे खरीद सकता था।