Prayagraj News- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तीन प्रोफसर्स के खिलाफ
आपराधिक याचिका को स्वीकार करने के साथ ही भारतीय न्याय व्यवस्था पर गम्भीर
टिप्पणी की है। न्यायालय ने कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था निरर्थक मुकदमेबाजी से बुरी
तरह से ग्रस्त है। इसे रोकने के लिए तरीकों और साधनों को विकसित करने की आवश्यकता
है। न्यायालय ने कहा कि व्यक्तिगत लाभ के लिए भारतीय न्याय व्यवस्था का
दुरुपयोग किया जा रहा है।
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न्यायालय ने कहा कि भारतीय समाज ने जीवन के दो
आधार सत्य और अहिंसा को पोषित किया है। महावीर, गौतम बुद्ध और
महात्मा गांधी ने इन मूल्यों को अपने दैनिक जीवन में अपनाने के लिए लोगों को मार्गदर्शति
किया है। सत्य न्याय-वितरण प्रणाली का एक
अभिन्न अंग था, जो स्वतंत्रता पूर्व युग में प्रचलित था और लोग परिणामों की परवाह
किए बिना न्यायालयों में सच बोलने में गर्व महसूस करते थे।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि स्वतंत्रता
के बाद से हमारी मूल्य प्रणाली में भारी बदलाव आया। भौतिकवाद ने पुराने लोकाचार को
खत्म कर दिया है और व्यक्तिगत लाभ के लिए लोग मुकदमेबाजी में शामिल होकर झूठ,
गलत
बयान बाजी और तथ्यों को दबाने में संकोच नहीं कर रहे हैं। न्यायालय ने कहा कि सर्वोच्च
न्यायालय और देश की दूसरी उच्च न्यायालयों ने कई बार इसको लेकर ठोस निर्णय दिए
हैं। मौजूदा मामला भी कानून की प्रक्रिया का पूरी तरह से दुरुपयोग है।
उल्लेखनीय है कि शिकायतकर्ता ने प्रोफेसर्स के
खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने के लिए झूठे और तुच्छ मामले दर्ज करके उन्हें
और उनके सहयोगियों को फंसाने की कोशिश की थी। जब भी विभागाध्यक्ष, शिकायतकर्ता महिला
को ठीक से पढ़ाने और नियमित रूप से कक्षाएं लेने के लिए कहते, तो
वह उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करा देती थी। यह कोई पहला मामला नहीं है जो घटित हुआ
हो। शिकायतकर्ता महिला सुशिक्षित है, कानून के
प्रावधानों को अच्छी तरह से जानती और समझती है। वह व्यक्तिगत लाभ के लिए कानून के
प्रावधानों का दुरुपयोग कर रही थी।
शिकायतकर्ता द्वारा दायर की गई शिकायत कुछ और
नहीं बल्कि कानून की प्रक्रिया का शुद्ध दुरुपयोग करना था। शिकायतकर्ता के कार्य
से प्रोफेसर्स की सार्वजनिक छवि खराब हुई। उन्हें अपने को बचाने के लिए दर-दर
भटकना पड़ा।