भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाली सरोजिनी नायडू के जन्मदिवस 13 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इसके पीछे,, उनका महिलाओं के लिए किया गया संघर्ष है, जो ये बताता है कि वे हमेशा महिलाओं के अधिकारों के लिए प्रयत्नशील रहीं। उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों के प्रति महिलाओं को जागृत किया और समाज में फैले जातिवाद, लिंग-भेद को मिटाने के लिए अपना विशेष योगदान दिया।
ये भी पढ़ें- आजमगढ़ के एक दिवसीय दौरे पर पहुंचेंगे MP CM डॉ मोहन यादव, BJP के पक्ष में बनाएंगे माहौल!
भारत की कोकिला के नाम से विख्यात सरोजिनी नायडू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरणा रहीं। देश की आजादी के बाद सरोजिनी नायडू को पहली महिला राज्यपाल बनने का गौरव प्राप्त हुआ। सरोजिनी नायडू स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ कवयित्री और शिक्षाविद भी थीं। वे भारतीय साहित्यिक इतिहास की महान कवयित्रियों में से एक थीं, इसलिए उन्हें ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ भी कहा जाता है।
साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान
सरोजिनी नायडू 20वीं सदी की सबसे लोकप्रिय महिलाओं में से एक थीं। उन्हें बचपन से ही कविताएं लिखने का शौक था। साहित्य के क्षेत्र में उनकी विशेष रुचि थी। 1905 में उनकी कविताओं का पहला संग्रह ‘गोल्डन थ्रेशोल्ड’ प्रकाशित हुआ। उनकी बेहतरीन लेखनी के चलते ही उन्हें ‘भारत कोकिला’ की उपाधि दी गई थी। सरोजिनी नायडू ने एक कवियित्री के तौर पर कई कविताएं लिखीं। साहित्य में उनका योगदान पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। सरोजिनी नायडू की प्रमुख किताबों में भारतीय बुनकर, किताबिस्तान, समय का पक्षी, द फेदर ऑफ द डॉन, भारत का उपहार, पालकी ढोने वाले आदि शामिल हैं।
हैदराबाद के बंगाली ब्राह्मण परिवार में सरोजिनी नायडू ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा चेन्नई से पूरी की और फिर बाद में वे हायर एजुकेशन के लिए लंदन और कैम्ब्रिज चली गईं। सरोजिनी नायडू को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रेजिडेंट के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में वे 1947 में संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) की गवर्नर बनीं। नायडू ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके अलावा 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।
सरोजिनी नायडू को कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। उनकी अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला और गुजराती भाषा पर अच्छी पकड़ी थी। लंदन में एक सभा के दौरान उन्होंने अपनी अंग्रेजी से सभी को खासा प्रभावित किया था।
प्लेग महामारी के दौरान किया सराहनीय कार्य
भारत में प्लेग महामारी के दौरान किए गए सराहनीय कार्यों के लिए उन्हें 1908 में ‘केसर-ए-हिंद’ से सम्मानित किया गया था,, लेकिन जलियांवाला बाग हत्याकांड से क्षुब्ध होकर उन्होंने यह सम्मान वापस कर दिया था।