Prayagraj News- इलाहाबाद उच्च
न्यायालय ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया और उत्तर प्रदेश बार काउंसिल ऑफ इंडिया को ऑल इंडिया
बार एक्जामिनेशन में शामिल होने वाले अधिवक्ताओं को तीस दिन में सर्टिफिकेट ऑफ प्रैक्टिस
को उनके घर भेजे जाने वाली जनहित याचिका पर निर्देश जारी करने से इंकार कर दिया है।
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न्यायालय ने कहा कि
जनहित याचिका को 2019 के सोशल मीडिया में
वायरल रिपोर्टों के आधार पर दाखिल किया गया है। इसमें अनुभयजन्य डेटा का अभाव है। लिहाजा याचिका खारिज करने योग्य है।
ये आदेश मुख्य न्यायमूर्ति अरुन भंसाली और न्यायमूर्ति विकास की खंडपीठ ने प्रतीक शुक्ला
की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।
बता दें कि न्यायालय ने ये भी कहा कि याचिका अच्छे उद्देश्य हेतु दाखिल की गई है।
याचिका में इस बात को इंगित किया गया है कि जिन केंद्रों पर ऑल इंडिया बार एक्जामिनेशन
परीक्षा आयोजित होती है। वहां कदाचार हुआ है और परीक्षा देने वाले उसमें शामिल हैं। न्यायालय
ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि याची ने वर्ष 2021 में इसी तरह की एक याचिका दाखिल की थी। जिसे उसने वापस ले ली थी और
लगभग तीन साल बीत जाने के बाद फिर वही याचिका दाखिल कर दी। न्यायालय ने कहा कि याचिका में किसी प्रकार
का बदलाव नहीं किया गया।
इस मामले में याची
की ओर से जनहित याचिका दाखिल कर बार काउंसिल ऑफ इंडिया और यूपी बार काउंसिल ऑफ इंडिया
को दो बिंदुओं पर निर्देश देने की मांग की गई थी। पहली मांग थी कि जिन केंद्रों पर
परीक्षा आयोजित हो रही है, वहां सीसीटीवी कैमरे
लगाए जाएं और परीक्षा में शामिल होने वालों के यहां तीस दिनों के भीतर प्रैक्टिस ऑफ
सर्टिफिकेट उनके घर भेज दिए जाए। कहा गया कि परीक्षा हर साल आयोजित की जा रही है लेकिन
इसमें हर साल परेशानी सामने आ रही हैं। इस वजह से परिणाम रोक दिए जाते हैं।