कारगिल युद्ध के हीरो परमवीर चक्र विजेता शहीद विक्रम बत्रा की मां कमलकांत बत्रा का 77 साल की उम्र में निधन हो गया। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के पालमपुर में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की वजह हार्ट अटैक बताई जा रही है। गुरुवार 15 फरवरी को उनका अंतिम संस्कार पालमपुर में किया जाएगा।
ये भी पढ़ें- उत्तराखंड: बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि तय, 12 मई को विधि-विधान से खुलेंगे कपाट
लड़ा था 2014 का लोकसभा चुनाव
कमलकांत बत्रा ने साल 2014 में आम आदमी पार्टी की तरफ से लोकसभा चुनाव लड़ा था। हालांकि, उन्हें चुनाव में हार मिली थी, बाद में उन्होंने आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे दिया था।
कारगिल युद्ध में बलिदान हुए थे विक्रम बत्रा
कमलकांत बत्रा के वीर बेटे कैप्टन विक्रम बत्रा ने मात्र 24 साल की उम्र में कारगिल युद्ध में लड़ते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। जब भी कारगिल युद्ध की बात होती है,, तो कैप्टन विक्रम बत्रा का नाम जरूर लिया जाता है। युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा ने जिस तरह से पाकिस्तानी सैनिकों को सबक सिखाया था, वो काफी सराहनीय है।
मरणोपरांत कैप्टन विक्रम बत्रा को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उनकी बहादुरी को देखते हुए उन्हें टाइगर ऑफ द्रास, लायन ऑफ कारगिल, कारगिल हीरो जैसे नामों से पुकारा जाता है।
शेरशाह के नाम से भी जाने जाते थे कैप्टन बत्रा
बता दें कि कैप्टन विक्रम बत्रा, जिन्हें “शेरशाह” के नाम से भी जाना जाता है। 20 जून 1999 को सुबह करीब साढ़े 3 बजे बत्रा की टीम ने प्वाइंट 5140 की चोटी पर कब्जा कर लिया था। इस चोटी से बत्रा ने रेडियो पर संदेश दिया था कि ये दिल मांगे मोर। इस ऑपरेशन के दौरान बत्रा को ‘शेरशाह’ कोड नेम दे दिया गया था।
1999 में कारगिल युद्ध के दौरान बहादुरी और समर्पण का प्रदर्शन करते हुए देश के लिए लड़ते हुए विक्रम बत्रा बलिदान हो गए थे। मरणोपरांत उनके साहसिक कार्यों के लिए ही उन्हें भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।