नई दिल्ली: मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संविधान बेंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। संविधान बेंच ने कहा कि “अगर सांसद या विधायक रिश्वत लेकर सदन में मतदान या भाषण देते हैं, तो वह मुकदमे की कार्रवाई से बच नहीं सकते हैं।” 7 जजों की संविधान बेंच ने 1998 के नरसिम्हा राव सरकार मामले के फैसले को पलटते हुए कहा कि अगर विधायक रिश्वत लेकर राज्यसभा में वोट देते हैं, तो उन पर प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत मुकदमा चल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर 5 अक्टूबर 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
उल्लेखनीय है कि वोट के बदले नोट मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना पुराना फैसला पलट दिया। 1998 के फैसले में पांच सदस्यीय पीठ ने 3/2 से फैसला सुनाया था कि सांसदों और विधायकों को संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) द्वारा प्रदत्त संसदीय विशेषाधिकारों के तहत विधानसभा में भाषण देने और वोट देने के लिए रिश्वत लेने के लिए मुकदमा चलाने से छूट दी गई है।
क्या था नोट के बदले वोट मामला
1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद देश में लोकसभा के चुनाव हुए। इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। चुनाव में कांग्रेस पार्टी 232 सीटें मिलीं। लेकिन, बहुमत के लिए 272 सीटों की आवश्यकता थी। कांग्रेस पार्टी की ओर से पीवी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया गया। सहयोगी दलों को मिलाकर कांग्रेस को उस समय बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल कर लिया।
किंतु 1991 में आर्थिक उदारीकरण और 1992 में बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरने के चलते पीवी नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ सीपीआईएम सांसद अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए। जब सदन में वोटिंग हुई तो अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 251 वोट और प्रस्ताव के विपक्ष में 265 वोट पड़े। इस प्रकार से राव सरकार गिरने से बच गई। लेकिन 3 साल बाद इस मामले में खुलासा हुआ कि जेएमएम और जनता दल के 10 सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट डाले थे।
बाद में इस मामले में सीबीआई ने आरोप लगाया कि सूरज मंडल, शिबू सोरेन समेत JMM के 6 सांसदों ने वोट के बदले रिश्वत ली थी। सीबीआई ने मामला दर्ज किया। 1998 में सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय पीठ ने इस मामले पर फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि ‘संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत संसद में दिए वोट के लिए किसी भी सांसद को अदालती कार्रवाई के लिए उत्तरदायी नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इसके बाद सभी मामले को खारिज कर दिया।’ वहीं, अब 25 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने आदेश को पलट दिया है।
पीएम मोदी ने फैसले का किया स्वागत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। पीएम मोदी ने फैसले के स्वागत करते हुए एक्स पर लिखा “स्वागतम। माननीय सुप्रीम कोर्ट का एक महान निर्णय जो स्वच्छ राजनीति सुनिश्चित करेगा और सिस्टम में लोगों का विश्वास गहरा करेगा।”