बेचूबीर मेला, जहां बुरी आत्माएं करेंगी तांडव और अंधेरे में बजेगी मनरी
21 नवंबर से शुरू होगा तीन दिवसीय बेचूवीर मेला,
दूर दराज़ के प्रांतों से भी आते हैं लोग
मिर्ज़ापुर- बंगाल का जादू, बस्तर का टोना तो काफी मशहूर है, लेकिन उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में एक ऐसा स्थान है जहां भूत-प्रेत तांडव करते हैं और अंधेरे में मनरी बजती है। हम बात कर रहे हैं बेचूबीर मेले की! जहां भूतों का मेला लगता है। वर्ष में तीन दिन लगने वाले बेचूबीर मेले की रात डरावनी रात होती है, जो भूत-प्रेत भगाने के कारनामों के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान प्रेत-बांधा से मुक्ति के अलावा संतानोत्पति के लिए विख्यात है। तीन दिवसीय बेचूबीर का मेला इस बार 21 नवम्बर से शुरु होने जा रहा है, जो 23 नवम्बर तक चलेगा।
डरावनी रातें जो रोंगटे खड़े कर दें…
बेचूबीर मेले में अजीबोगरीब भूतों का आगमन होता है, कोई लड़की कब लड़के की आवाज में बात करने लगे, एक बुढ़िया चार-चार हट्टे-कट्टे नौजवानों को झटकारते हुए फेंक दे, कब कोई औरत तेजी से रोने लगे, कब किसकी आंखे लाल हो जाय, कब कोई पत्थर पर अपना माथा पीट ले, कब कोई अपने ही भाई को गाली देने लगे, कब कोई औरत अर्द्धनग्न हो जाय, कब कोई बंदर बंदरियों की हरकत करने लगे और कब कोई आपको एकटक देखते हुए डराने लगे, कुछ कहा नहीं जा सकता। विज्ञान और आस्था का मल्ल युद्ध किसी तिलस्म की तरह होता है। मगर अधिकांश लोगों का कहना होता है कि वह विज्ञान से निराश होकर यहां आए हैं। बेचूबीर बाबा की चौरी पर अधिकांशतः बिहार, बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान से लोग आते हैं।
वर्ष में एक बार लगता है बेचूबीर का मेला
मिर्ज़ापुर जनपद में चुनार तहसील क्षेत्र अंतर्गत अहरौरा से लगभग आठ किलोमीटर दूर पश्चिम-दक्षिण में नक्सल प्रभावित क्षेत्र स्थित बरही गांव के जंगली इलाके में बेचूबीर बाबा की चौरी है। गांव ऐसा की शायद इससे पिछड़ा उत्तर प्रदेश का कोई गावं नहीं होगा, लेकिन हर वर्ष मेले में पांच लाख से अधिक लोगों की भीड़ से पूरा गांव पट जाता है। यहां कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से एकादशी की सुबह तक वर्ष में एक बार विशाल मेला लगता है। यहां दूर-दराज से लोग आते हैं और तीन दिन तक रूककर पूजा अर्चना करते हैं। अंततः दशमी-एकादशी की भोर बाबा की मनरी बजने के बाद पुजारी के द्वारा फेंके गए चावल के चंद दाने प्रसाद के रूप में लेकर घर वापस लौटते हैं।
बेचू कैसे बने बेचूबीर बाबा
बेचूबीर मेला का काल खंड करीब चार सौ वर्ष पुराना माना जाता है। जब पूरा इलाका जंगल था। विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं में इस क्षेत्र का विस्तार था। तब इस जंगल में खूंखार जंगली जानवरों का बसेरा था। शेर बाघ, भालू, हिरन आदि बहुतायत में थे। तो अब जानते हैं कि बेचू बाबा की कहानी वास्तव में है क्या?, क्या कथा है इस धाम के पीछे, कौन थे बेचू बाबा? आखिर क्या ऐसा हुआ था जो ये धाम इतना प्रचलित हो गया? स्थानीय लोग बताते हैं कि बहुत समय पहले इस इलाके में न तो कोई आबादी रहा करती थी न कोई गांव था, यह बस एक घना जंगल था। बेचूबीर बाबा की अपनी अलग ही कहानी है।
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यादववंशी बेचूबीर मूलरूप से मध्य प्रदेश में सरगुजा के निवासी थे। अहरौरा में जहां आज जरगो बांध का विशाल जलाशय है, वहां पहले छोटे-छोटे कई गांव बसे थे। इन्हीं में एक गांव था गुलरिहां। वर्षों पहले बेचूबीर अपने परिवार के साथ आकर यहां बस गए थे। बेचूबीर भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। वह हमेशा अपने आराध्य देव की पूजा-पाठ में लगे रहते थे। बेचूबीर बहुत ताकतवर और कुशल मल्ल योद्धा भी थे। जनपद का तत्कालीन प्रख्यात योद्धा वीर लोरिक बेचूबीर का परम भक्त था।
बताते हैं, एक बार बेचूबीर और लोरिक बरही के घनघोर जंगल में साधना कर रहे थे। उसी समय कुछ शत्रुओं ने अचानक वहां आक्रमण कर दिया, लोरिक तो वहां से भाग खड़ा हुआ किन्तु बेचूबीर की साधना नहीं टूटी और वह जंगल में अकेले ही रह गए। कुछ देर बाद घूमते-घूमते एक शेर वहां पर आ गया। घनघोर जंगल में बेचूबीर को अकेला देख शेर ने उन पर आक्रमण कर दिया, तो उनका ध्यान टूटा। अदम्य शक्तिशाली होते हुए भी उन्होंने शेर का वध नहीं किया, बल्कि तीन दिनों तक लगातार उसका प्रतिरोध करते रहे, फिर भी शेर भागने का नाम नहीं ले रहा था। आखिर तीन दिनों में बेचूबीर को बुरी तरह घायल करने के बाद शेर भी वहीं गिरकर बेहोश हो गया।
उसी समय बेचूबीर को खोजते हुए कुछ लोग वहां आ गए। घायल देखकर सब उन्हें लेकर गांव की तरफ जाने लगे तो क्षीण स्वर में बेचूबीर बोले, मरने के बाद मेरे शरीर को आग के हवाले मत करिएगा और जहां मेरी सांस थमे वहीं धरती में गाड़कर एक चौरी बना देना। लोग बेचूबीर को लेकर गांव की तरफ चले। आखिरकार बरही गांव पहुंचते-पहुंचते उनके प्राण पखेरू उड़ गए। तब लोगों ने बेचूबीर को वहीं जमीन के नीचे दफन कर एक चौरी बना दिया। इस बीच पति के घायल होने की जानकारी बेचूबीर की पत्नी को मिली तो वह भागी-भागी बरही पहुंची, लेकिन पति के दर्शन नहीं कर सकीं। लोग बेचूबीर को समाधी देने के बाद नदीं में स्नान करने चले गए थे। पति के वियोग में उन्होंने पास के जंगल से लकड़ियां चुनकर अपने हाथों से चिता सजाई और उसमें बैठकर बेचूबीर की पत्नी सती हो गईं।
यह जानकारी जब उनके मायके वालों को लगी तो उन्होंने चिता की राख लेकर बरही क्षेत्र में ही इमिलिया गांव के किनारे उनकी भी चौरी बना दी। कालान्तर में यह बरहिया माई के नाम से जानी जाने लगीं। बेचूबीर की तरह ही उनकी पत्नी यानी बरहिया माई की भी पूजा उनके कथित मायके वाले करते हैं। मेले के दौरान यहां काफी संख्या में प्रेत-बाधा से ग्रसित महिलाएं खेलती-हबुआती देखी जा सकती हैं। मान्यता है कि बेचूबीर की तरह यह भी अपने श्रद्धालुओं के दुःख दूर करती हैं।
श्रद्धालु भक्सी नदी में स्नान कर छोड़ देते हैं अपने वस्त्र
बेचूबीर बाबा चौरी के पुजारी ब्रजभूषण यादव बताते हैं कि घटना के लगभग एक वर्ष बाद बेचूबीर ने अपने परिजनों को स्वप्न में आदेश दिया कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी की रात चौरी पर आकर पूरे विधि-विधान से पूजा करो तो तुम सब का कल्याण होगा। स्वप्न में मिले आदेश पर बेचूबीर के छोटे भाई सरजू ने चौरी की लिपाई-पुताई कर पूरे विधि-विधान से पूजा करना शुरू किया। धीरे-धीरे वहां और लोग पूजा करने आने लगे, फिर उनकी प्रसिद्धि बढ़ती गई और आज देश के कोने-कोने से लोग उनकी पूजा करने आते हैं। तीन दिवसीय विशाल मेले में आए श्रद्धालु पहले भक्सी नदी में नहाकर अपने अंतःवस्त्र छोड़ देते हैं। इसके बाद वह बेचूवीर तथा बरहिया माई की पूजा करते हैं। मेले में भूत-प्रेत बाधितों के अलावा अन्य कारणों से दुःखी या रोगी लोग भी आते हैं। इनमें संतान प्राप्ति की कामना करने वालों की संख्या काफी होती है।
ऐसी मान्यता है कि पांच वर्ष तक नियमित आने पर उनकी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं, पर सच्चाई क्या है? इसका प्रत्यक्ष अनुभव तो यहां आने वाला ही कर सकता है।
तब तक बेचूवीर बाबा की चौरी से नहीं ले जा सकते हैं चढ़ावा
बेचूवीर की चौरी पर चढ़ावे के रूप में पीली धोती, चुनरी, नारियल, इलायचीदाना, मिठाई, जनेऊ, खड़ाऊ आदि घर ले जाना उचित नहीं है। इसके चलते कोई भी श्रद्धालु प्रसाद के रूप में भी नहीं ले जा सकता, जब तक कि पुजारी द्वारा स्वयं उसे न दिया जाए। चौरी पर मुर्गा और बकरा भी चढ़ाया जाता है। शुरू में तो इनकी बलि दी जाती थी, लेकिन अब यह हिंसा नहीं दिखाई देती। बताते हैं, बेचूबीर द्वारा स्वप्न में दिए आदेश के चलते यह बंद हुआ है।
विज्ञान को चुनौती देता है बेचूवीर मेला
बेचूवीर बाबा की चौरी विज्ञान और चिकित्सा के लिए चुनौती है। अब इसे अंधविश्वास कहें या फिर आस्था लेकिन लोगों का मानना है कि यहां आने से तथाकथित भूत, प्रेत, आदि बुरी आत्माओं से मुक्ति मिलती है। यही नहीं, गंभीर बीमारियों से भी लोगों को मुक्ति मिलती है या फिर जिनके संतान नहीं हैं, उन्हे संतान की भी प्राप्ति होती है। तीन दिवसीय इस मेले में बिहार, बंगाल, मध्यप्रदेश प्रांतों सहित उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, चंदौली, बनारस, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर, प्रयागराज आदि जनपदों से भी लोग आते हैं।