शारदीय नवरात्र के 5वें दिन वाराणसी में परम्परानुसार श्रद्धालुओं ने जैतपुरा बागेश्वरी देवी मंदिर परिसर स्थित स्कंदमाता के दरबार में हाजिरी लगाई। दरबार में बुद्धि, वात्सल्य और प्रेम की मूर्ति स्कंदमाता का भक्तों ने दर्शन और पूजन किया।
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इसके लिए माता के दरबार में भोर से ही श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी कतारें लग गईं। रात तीन बजे के बाद मातारानी का श्रृंगार और मंगला आरती कर मंदिर का पट आम लोगों के लिए खुल गया। मंदिर परिसर में माता रानी का जयकारा गूंजता रहा। पांचवे दिन नगर के अन्य देवी मंदिरों दुर्गाकुण्ड स्थित मां कुष्मांडा, मां संकटा मंदिर के करीब आत्माविशेश्वर मंदिर परिसर में मां कात्यायनी मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप कालिका गली स्थित काली मंदिर, मां अन्नपूर्णा मंदिर, गोलघर मैदागिन में सिद्धिमाता मंदिर, लक्सा स्थित महालक्ष्मी मंदिर, भदैनी स्थित मां महिषासुर मर्दिनी, लहुराबीर स्थित गायत्री माता मंदिर, शीतलाघाट स्थित शीतलादेवी, त्रिदेव मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही।
कहते हैं माता रानी की कृपा से बुद्धि बढ़ती है। इसलिए मां के दरबार में बच्चों और युवाओं की भीड़ भी काफी उमड़ती है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु माता को गुलाब, गुड़हल और गेंदे का फूल समर्पित करते हैं। इसके अलावा माता को चुनरी और नारियल के साथ पीली बर्फी का भोग लगाया जाता है।
बता दें कि मां दुर्गा का पंचम स्वरूप स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है। भगवान स्कंद कुमार की माता होने के कारण मां को स्कंदमाता नाम प्राप्त हुआ है। मां कमल के पुष्प पर विराजमान हैं। इन्हें पद्मासना देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन सिंह है। स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी उपासना से साधक को अलौकिक तेज की प्राप्ति होती है।
काशी खंड, स्कंद पुराण में देवी का भव्य वर्णन किया गया है। स्कंद माता को वात्सल्य की मूर्ति भी कहा जाता है। मां अपने भक्तों के लिए मोक्ष के द्वार भी खोलती हैं। मां स्कंदमाता के साथ-साथ भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। स्कंद माता की चार भुजाएं हैं। माता दाहिनी तरफ के ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें कमल-पुष्प लिए हुए हैं।