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कांवड़ खंडित करने वाले उस्मान को पुलिस ने किया गिरफ्तार, वीडियो कॉल पर आरोपी ने कांवड़यों से मांगी माफी, अब न्यायालय में होगी पेशी

9 जुलाई 2024: संघ की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों को भाग लेने की मिली थी अनुमति, गौहत्या के विरोध में आंदोलन करने पर इंदिरा गांधी ने लगाया था बैन, जानिए पूरा इतिहास!

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9 जुलाई 2024: संघ की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों को भाग लेने की मिली थी अनुमति, गौहत्या के विरोध में आंदोलन करने पर इंदिरा गांधी ने लगाया था बैन, जानिए पूरा इतिहास!

इंदिरा गांधी सरकार ने 9 जुलाई 1966 को संघ को राजनीतिक संगठन बताते हुए, सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की गतिविधि में शामिल होने पर रोक लगा दी थी. जिसे 9 जुलाई 2024 क मोदी सरकार ने हटा दिया था.

live up bureau by live up bureau
Jul 9, 2025, 06:09 pm IST
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने स्थापना के 100वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है. संघ की 100 वर्षों की यात्रा कठिनाइयों से भरी रही. कई बार राजनीतिक द्वेष के चलते प्रतिबंध लगाया गया. लोग संघ से न जुड़े इसलिए कुप्रचार किया गया. लेकिन फिर भी संघ अपने रचनात्मक कार्यों के चलते विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बनकर उभरा.

विजयादशमी के दिन 1925 को नागपुर में संघ की स्थापना हुई. राष्ट्रहित सर्वोपरि की भावना से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोग संघ के स्वयंसेवक बने. लेकिन एक द्वेष पूर्ण निर्णय के तहत 30 नवंबर 1966 को तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने संघ की गतिविधियों में सरकार कर्मचारियों के शामिल होने पर रोक लगा थी. जिसे 22 जुलाई 2024 को मोदी सरकार ने वापस लिया था.

संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर क्यों लगी रोक?

7 नवंबर 1966 को भारतीय संसद में गोहत्या के खिलाफ बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए. आरएसएस और भारतीय जनसंघ के लाखों कार्यकर्ताओं ने साधु-संतों के साथ गोहत्या का विरोध किया. विरोध प्रदर्शन को कुचलने के लिए इंदिरा गांधी की सरकार ने निहत्थे लोगों पर फायरिंग करने के आदेश दे दिए.

जिसमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए. इस प्रदर्शन से इंदिरा गांधी सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनसंघ की क्षमताओं का अनुमान लगा लिया था. भयभीत कांग्रेस सरकार ने दुर्भावनापूर्ण निर्णय लेते हुए 30 नवंबर 1966 को सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया.

केंद्र सरकार ने अपने आदेश में क्या कहा?

भारत सरकार के उप सचिव के कार्यालय से 9 जुलाई 2024 को, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय व कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को एक आदेश जारी किया गया था. जिसमें कहा गया था कि 30.11.1966, 25.07.1970 व 28.10.1980 के विवादित कार्यालय ज्ञापनों से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का उल्लेख हटा दिया जाए.

अर्थात इन तारीखों को जो आरएसएस की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों की भागीदारी-संबंधी आदेश जारी किया गया था, वह अब लागू नहीं होगा.

इंदिरा गांधी सरकार ने आपने आदेश में क्या कहा था?

इंदिरा गांधी सरकार ने 9 जुलाई 1966 को संघ को राजनीतिक संगठन बताते हुए, सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की गतिविधि में शामिल होने पर रोक लगा दी थी. साथ ही आदेश में यह भी कहा था कि कोई भी सरकारी कर्मचारी यदि इस संगठन में शामिल होता है और आर्थिक सहयोग करता है तो उसके खिलाफ केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 के नियम 5 के उप-नियम (1) के कार्रवाई की जाएगी.

यह आदेश उस 7 नवंबर 1966 को भारतीय संसद में गोहत्या के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन के बाद इंदिरा गांधी सरकार ने जारी किया था. जिसमें संघ के स्वयंसेवक भी शामिल हुए थे. गोहत्या को लेकर हुआ विरोध प्रदर्शन पूरी तरह से धार्मिक मान्यताओं के आधारित था. जिसमें बड़ी संख्या में साधु-संत भी शामिल हुए थे.

उस समय की इंदिरा गांधी सरकार ने इस आंदोलन को अपने लिए राजनीतिक चुनौती मानते हुए निहत्थे प्रदर्शनकारियों और साधु-संतों पर पहले लाठियां बरसाईं थी फिर फायरिंग करने के आदेश दे दिए थे. जिसमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे.

साधु-संतों पर इंदिरा सरकार ने चलवाईं गोलियां

7 नवंबर 1966 को गोपाष्टमी के दिन गोहत्या बंद करने को लेकर देशभर से लाखों लोग दिल्ली की सड़कों पर उतर आए थे. सब की एक ही मांग थी भारत में गोहत्या पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगे.आंदोलन का नेतृत्व स्वामी करपात्री जी महाराज कर रहे थे.

वे चांदनी चौक के आर्य समाज मंदिर से पैदल मार्च करते हुए संसद भवन की ओर निकले. उनके साथ शंकराचार्य, वल्लभ संप्रदाय के पीठाधिपति व देशभर से आए हजारों संत, साधु और गोभक्त थे. आंदोलन को संघ और भारतीय जनसंघ ने भी अपना समर्थन दिया था.

सुबह 8 बजे से ही दिल्ली में भारी भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी. जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक के लोग आए थे, सबकी एक ही मांग थी गोहत्या पर कानून बने. उस समय देश की प्रधानमंत्री थीं इंदिरा गांधी और गृहमंत्री की जिम्मेदारी गुलजारीलाल नंदा थे. सरकार केवल आश्वासन देती रही, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.

दोपहर 1 बजे तक प्रदर्शनकारी संसद भवन पहुंच गया. संतों ने भाषण देने शुरू किए. लेकिन सरकार की तरह से कोई भी प्रतिक्रिया सामने नहीं आई. तीन बजे जब स्वामी रामेश्वरानंद बोले कि यह सरकार बहरी है. लोगों ने विरोध स्वरूप संसद को घेर लिया. लेकिन तभी पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का प्रयोग किया.

लाठीचार्च की थोड़ी देर बाद इंदिरा गांधी सरकार ने लाठीचार्ज का आदेश दे दिया. पुलिस ने साधु-संतों और अन्य प्रदर्शनकारियों पर सीधी गोलीबारी शुरू कर दी. सड़कें खून से लाल हो गईं. सैकड़ों संत और गोभक्त मारे गए. सरकार ने मारे गए लोगों की सही जानकारी छिपाने की कोशिश की.

घटना को दबाने के लिए दिल्ली की टेलीफोन लाइनें काट दी गईं. मरे गए लोगों के शवों और घायलों को ट्रकों में भरकर ले जाया गया. पूरी दिल्ली में कर्फ्यू लगा दिया गया. करीब 50,000 लोगों को तिहाड़ जेल में डाल दिया गया.

जेल में भी करपात्री जी महाराजा और नागा साधुओं ने सत्याग्रह करता शुरू कर दिया. उन्हें अनेक यातनाएं दी गईं. आंदोलनकारियों को एक महीने बाद जेल से छोड़ा गया.

गुलजारी लाल नंद की जगह गृह मंत्री की जिम्मेदारी संभालने वाले यशवंत राव बलवतंराव चव्हाण ने स्वामी करपात्री जी से वादा किया कि अगले सत्र में गोहत्या रोकने के लिए कानून बनेगा. लेकिन आज तक वादा पूरा नहीं हुआ.

पाबंदी हटाने पर संघ की प्रतिक्रिया

सरकारी कर्मचारियों पर संघ की गतिविधियों में भाग लेने की पाबंदी हटाने पर संघ की भी प्रतिक्रिया सामने आई थी. संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने बयान जारी किया था.

उन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गत 99 वर्षों से सतत राष्ट्र के पुनर्निर्माण के काम में लगा हुआ है. समाज सेवा के विभिन्न कार्यक्रमों में वो सतत संगलंग्न है. राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता, अखंड़ता एवं प्राकृतिक आपदा के जो भी समय आता है, उस समय समाज को साथ संघ के कार्यकर्ता लगातार अपना योगदान देते हैं.

ऐसे कार्यों को समाज के विभिन्न प्रकार के नेतृत्व में समय-समय पर संघ की प्रसंशा भी की है. परंतु अपने राजनीतिक स्वार्थों के चलते तत्कालीन सरकार द्वारा राजकीय कर्मचारियों को संघ जैसे रचनात्मक कार्य करने वाले संगठन की गतिविधियों में भाग लेने के लिए पाबंदी लगाई गई थी. वर्तमान के शासन ने आज जो उस पाबंदी को उठाया है, यह निर्णय समुचित है और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को यह निर्णय पुष्ट करेगा.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गत 99 वर्षों से सतत राष्ट्र के पुनर्निर्माण एवं समाज की सेवा में संलग्न है। राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता-अखंडता एवं प्राकृतिक आपदा के समय में समाज को साथ लेकर संघ के योगदान के चलते समय-समय पर देश के विभिन्न प्रकार के नेतृत्व ने संघ की भूमिका की प्रशंसा भी की… pic.twitter.com/MxRelxOyU4

— RSS (@RSSorg) July 22, 2024

यह भी पढ़ें: 8 जुलाई 1859, प्रथम स्वाधीनता संग्राम का अंत: क्रांतिकारियों के हौसले के सामने नतमस्तक हो गई थी फिरंगी सरकार, कंपनी शासन का अंत और पाश्चात्य संस्कृति को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों से बना ली थी दूरी

Tags: fire on saintsGovernment employees Ban RSS activitiesIndira GandhiRashtriya Swayamsevak Sangh
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