वाराणसी: काशी में आज अघोरियों ने मणिकर्णिका घाट पर मसाने की होली खेली. किसी ने गले में नरमुंड की माला पहनी, तो किसी ने भूत-पिशाच का रूप धारण कर तांडव मचाया. वहीं, किसी ने मां काली का रौद्र रूप भी दिखाया. किसी ने मुंह में जिंदा सांप दबाकर नृत्य किया. वहीं, अघोरियों ने जलती चिता की राख से होली भी खेली. ये नजारा देख वहां मौजूद विदेशियों ने दांतों तले उंगली दबा ली. मसान की होली देखने के लिए कई देशों से टूरिस्ट पहुंचे थे.
दरअसल, होली के पर्व से पहले काशी में श्मशान की राख से होली खेलने की परंपरा है. काशी में अघोरी फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी के अगले दिन हर साल मसान की होली खेलते हैं. इस साल काशी में मसान होली 11 मार्ज दिन मंगलवार को खेली गई. काशी के लोगों की माने तो श्मशान घाट पर चिता की राख से होली खेलने की ये अनोखी परंपरा सदियों से चली आ रही है. इसका गहरा आध्यात्मिक महत्व है. स्थानीय लोगों का कहना है कि वो श्मशान में होली खेलकर जीवन और मृत्यु के चक्र को समझने का प्रयास करते हैं. ये परंपरा उन्हें जीवन की नश्वरता का स्मरण कराती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने सबसे पहले श्मशान के राख से होली खेली थी.
पौराणिक कहानियों और मान्यता के अनुसार भगवान शिव विवाह के बाद माता पार्वती के साथ पहली बार काशी आए थे. वो दिन रंगभरी एकादशी का दिन था. इस दिन पर भगवान शिव और माता पार्वती ने अबीर और गुलाल से होली खेली. ऐसे में चारों ओर खुशी का माहौल था. दूर से ही इस दिल्य लीला को देखकर भक्तगण आनंदित हो रहे थे. पूरा माहौल भक्ति के भाव से ओत-प्रोत हो गया. वहीं, अगले दिन ऐसी घटना हुई, जो हमेशा के लिए एक परंपरा बन गई. भगवान शिव के अनोखे भक्त, जिनमें भूत-प्रेत, पिशाच और अघोरी साधु शामिल थे, उन्होंने शिव से होली खेलने का निवेदन किया.
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भगवान शिव अपने इन अनोखे भक्तों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते थे. वे समझते थे कि उनके ये भक्त जीवन के रंगों से हमेशा दूर रहते हैं. इसलिए उन्होंने उनके साथ कुछ खास तरह से होली खेलने की सोंची. भगवान शिव मसान में पड़ी चिता की राख को हवा में उड़ाने लगे. इसके बाद उनके सभी शिव भक्त उनके साथ मसान की राख से होली खेलने लगे. ये दृश्य अद्भुत था और अचंभित कर देने वाला था. उधर, माता पार्वती इस नजारे को दूर से खड़ी होकर देख रही थीं और मुस्कुरा रही थीं.
वहीं, इसी परंपरा के तहत काशी के मणिकर्णिका घाट पर कोई अघोरी गले में नरमुंडों की माला पहनकर तांडव करते दिखा, तो कोई डमरू की थाप पर नाच रहा था. नागा संन्यासियों ने तलवारें और त्रिशूल लहराया. इस जश्न के दौरान एक शवयात्रा भी निकली, लेकिन भीड़ इस कदर थी कि पैर रखने तक कि जगह नहीं थी. रंग और चिता की राख हवा में उड़ता देख विदेशी सैलानी भी झूम उठे. करीब 25 देशों के लोग मसाने की होली देखने के लिए काशी पहुंचे. वहीं, चिता की राख से दूर रहने वाले आम लोग आज उसी चिता की राख से सने नजर आ रहे थे.