नई दिल्ली: राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष द्वारा दाखिल किया गया अविश्वास प्रस्ताव शुक्रवार को खारिज हो गया. प्रस्ताव को खारिज करते हुए सभापति ने नोटिस में दी गई कम समय की अवधि, नाम की गलत स्पेलिंग और कानूनी पेचीदगियों का हवाला दिया.
यह प्रस्ताव 60 सांसदों द्वारा पेश किया गया था, जिन्होंने उप राष्ट्रपति और सभापति के खिलाफ राज्यसभा में नो कॉन्फिडेंस मोशन दाखिल किया था. इन सांसदों का आरोप था कि सभापति ने अपनी कार्यशैली में पक्षपाती रवैया अपनाया है और विपक्षी नेताओं को उचित समय और अवसर नहीं दिया
सभापति ने क्या कहा?
जगदीप धनखड़ ने कहा कि प्रस्ताव में तकनीकी खामियां थीं, जैसे कि इसमें समुचित 15 दिनों का समय नहीं दिया गया था. साथ ही अन्य कई कानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी की गई थी. इसके अलावा, प्रस्ताव में उनके नाम की स्पेलिंग भी गलत लिखी गई थी, जो कि एक और कानूनी अनियमितता के रूप में सामने आई. इन सभी कारणों से उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया.
विपक्ष का आरोप
विपक्षी सांसदों का आरोप था कि सभापति ने कई मामलों में बिना किसी उचित कारण के उनके सदस्यता की आवाज को दबाया. विपक्षी सांसदों का कहना था कि धनखड़ का रवैया लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है, वह पक्षपाती निर्णय ले रहे हैं.
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अविश्वास प्रस्ताव का कानूनी पहलू
राज्यसभा के नियमों के अनुसार, अविश्वास प्रस्ताव केवल सदस्य की कार्यशैली या किसी अन्य गंभीर कारणों के खिलाफ दाखिल किया जा सकता है. इसे खारिज करने के लिए सभापति के पास कानूनी अधिकार है, उन्होंने इसी अधिकार का उपयोग करते हुए इसे रद्द कर दिया.
क्या है नियम?
अनुच्छेद 67(B) के तहत राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है. इसको लेकर सभापति को 14 दिन पूर्व नोटिस देना अनिवार्य होता है. हालांकि, विपक्ष ने सभापति जगदीप धनखड़ को 14 दिनों पहले नोटिस नहीं दिया था. जिसके चलते व अन्य कानूनी कमियों के चलते अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया.