बलरामपुर: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई महिलाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ अपने जीवन की आहुति दी, लेकिन इन वीरांगनाओं में से, कुछ को उतना सम्मान नहीं मिला, जितनी वे हकदार थीं. उन्हीं में से एक थीं, बलरामपुर जिले के तुलसीपुर स्टेट की रानी राजेश्वरी देवी. उनकी बहादुरी की कहानी इतिहास में तो दर्ज है, लेकिन उन्हें कम ही लोग जानते हैं. रानी राजेश्वरी देवी ने रानी लक्ष्मीबाई की तरह अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया और अपने राज्य की रक्षा के लिए जंगलों में छिपकर भी संघर्ष किया.
1857 की क्रांति में रानी की वीरता
1857 की क्रांति में रानी राजेश्वरी देवी का उल्लेख होता है. जब पूरे देश में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह का माहौल था, तो तुलसीपुर की रानी ने भी अपनी प्रजा के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. रानी ने अपनी प्रजा को विश्वास में लिया और एकजुट होकर विद्रोह शुरू किया. इसके बाद अंग्रेजों ने राजा दूगनरायण सिंह को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें लखनऊ स्थित रेजिडेंसी में कैद कर दिया. कैद में रहते हुए अंग्रेजों ने राजा दूगनरायण को इतनी यातनाएं दीं कि उनकी जान चली गई.
बेटे को पीठ पर बांधकर लड़ा युद्ध
अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचार और मनमाने तरीके से लगान वसूली से जनता परेशान थी. जिसको देखते हुए रानी राजेश्वरी देवी ने अपनी तलवार उठाई और अपने छोटे बेटे को पीठ पर बांधकर अंग्रेजों से भिड़ गईं. उन्होंने अपनी वीरता से अंग्रेजों से मोर्चा लिए, रानी ने हजारों फिरंगियों को मौत के घाट उतार दिया. लेकिन इस युद्ध में उनकी सेना भी कम होती गई. एक वह महल में थीं, जब अंग्रेजों ने महल को घेर लिया और हमला कर दिया. रानी ने अपनी सेना के साथ मिलकर अंग्रेजों से पूरी ताकत से लड़ा, लेकिन समय के साथ अंग्रेजों ने उनकी घेराबंदी बढ़ा दी.
सोनार पर्वत से होकर नेपाल में ली शरण
अंग्रेजों की चतुरंगी सेना के आगे रानी की सेना धीरे-धीरे कमजोर हो रही थी. अंग्रेज किसी भी प्रकार से रानी राजेश्वरी देवी को कैद कर उनकी हत्या करना चाहते थे. किसी ने यह जानकारी रानी को दी. राजेश्वरी देवी के सलाहकारों ने उन्हें नेपाल जाने की सलाह दी. जिसके बाद उन्होंने अंग्रेजों से बचने के लिए जंगलों में छिपते हुए अन्य क्रांतिकारियों के साथ सोनार पर्वत के रास्ते नेपाल पहुंचीं. यहां उन्हें अन्य क्रांतिकारी नेताओं जैसे देवीबख्श सिंह, नाना साहब और बालाराव का सहयोग मिला. जिसके बाद रानी का हौसला और मजबूत हुआ. तमाम परेशानियों को सामना करने के बाद भी उन्होंने महाराणा प्रताप और रानी लक्ष्मी बाई की तरह कभी भी अंग्रेजों क सामने झुकना नहीं स्वीकार किया.
जंगलों में रहते हुए अंग्रेजों से लिया मोर्चा
रानी राजेश्वरी देवी ने जंगलों में रहकर अंग्रेजों से मोर्चा लिया. वह अपने बच्चे के साथ जंगलों में छिपते-छिपते दिन बिताने लगीं. कभी महलों में रहने वाली रानी अब जंगलों में सोने थीं. वह जंगली फलों और पत्तियों से अपना व बच्चे का पेट भरतीं। रानी राजेश्वरी देवी की वीरता और संघर्ष ने उन्हें एक महान योद्धा बनाकर इतिहास में अमर कर दिया.
अंग्रेजों ने नष्ट किया महल
रानी के नेपाल जाने के बाद अंग्रेजों ने उनके महल को पूरी तरह से नष्ट कर दिया. इस कारण तुलसीपुर राज परिवार की यादें और रानी के बारे में तमाम जानकारी भी मिट गई. आजादी के बाद कांग्रेस की सरकार बनी. लेकिन सरकार ने रानी राजेश्वरी देवी को वह सम्मान नहीं दिया, जिसकी वह सही मायने में हकदार थीं. उनके संघर्ष और बलिदान के बावजूद उन्हें वह श्रद्धांजलि नहीं मिली, जो उन्हें मिलनी चाहिए थी.