अमेठी; दीपोत्सव का पर्व दीपावली आने में अब कुछ ही दिन शेष हैं. बाजार रंगीन झालरों व चाइनीज लाइटों से भरा पड़ा है. लेकिन दीपावली का यह पावन पर्व मिट्टी के दीपकों में घी व सरसों का तेल डाल कर मनाया जाए तभी इस की सार्थकता है. क्योंकि यही इस त्यौहार का परंपरागत तरीका है.
बात दें कि भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी पर्वों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है. दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है. भारतीय प्रति वर्ष यह पर्व हर्ष व उल्लास से मानते हैं. लेकिन ऐसे में आजकल लोगों के ऊपर फैशन का भूत सवार हो गया है. दीपोत्सव के इस त्यौहार में लोग दीपक की जगह पर मोमबत्ती जलाते हैं और रंगीन चाइनीज झालरों व लाइटों से घर को सजाते हैं.
वहीं गांव में निवास करने वाले तमाम कुम्हारों का परिवार आज भी अपने परंपरागत इस त्यौहार के आने से पहले ही मिट्टी के बर्तन, दिये तथा खिलौने इत्यादि बनाने का कार्य प्रारंभ कर देते हैं. उन्हें त्योहारों के आने का इंतजार रहता है. त्योहारों के बदौलत ही वह अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. उन्हें त्योहारों के आने का इंतजार रहता है.
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मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों इस बात की पूरी उम्मीद है कि लोग अपनी पुरानी परंपरा की ओर लौटेंगे विदेशी सामानों का बहिष्कार करते हुए मिट्टी के दिए से अपना त्यौहार मनाएंगे. गवों के कुम्हारों का कहना है कि सभी से मेरी गुजारिश है कि आप लोग बेहिचक गांव के छोटे दुकानदारों से सामान लेकर अपनी दीपावली मनाएं. जिससे हम लोगों के घर भी दीपावली अच्छे से मनाई जा सके.