महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है. राज्य की 288 विधानसभा सीटों पर 20 नवंबर को मतदान होगा. इसको देखते हुए सभी दल सियासी समीकरणों को साधने में लगे हैं. प्रदेश में मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति और विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी (MVA) के बीच माना जा रहा है. लेकिन, सपा प्रमुख अखिलेश यादव की सक्रियता से महाराष्ट्र में MVA की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. आज शुक्रवार को सपा प्रमुख अखिलेश यादव महाराष्ट्र के दो दिवसीय दौरे पर पहुंच रहे हैं. यहां वह 2 जनसभाओं को भी संबोधित करेंगे. सपा प्रमुख महाराष्ट्र में तब दो दिनों तक रहेंगे, जब यूपी में भी 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है. इससे यह पता चलता है कि समाजवादी पार्टी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों को कितनी गंभीरता से ले रही है.
MVA की बैठकों में सपा को निमंत्रण नहीं
कांग्रेस, एनसीपी (शरद गुट) और शिवशेना (उद्धव गुट) महाराष्ट्र की राजनीति में अपना विशेष महत्व रखते हैं. तीनों दलों का अपना-अपना जनाधार भी है. यही कारण है कि भाजपा से मुकाबला करने के लिए इन तीनों दलों ने मिलकर महाविकास अघाड़ी नाम से गठबंधन बनाया है. इस गठबंधन में लोकसभा चुनाव में सफलता भी हासिल की थी. लेकिन अब सपा ने एमवीए की मुश्किलें बढ़ी ही हैं.
दरअसल, कांग्रेस, एनसीपी (शरद) और शिवशेना (उद्धव) यह तीनों दल इंडी गठबंधन के मुख्य घटक दल हैं. इस गठबंधन में सपा भी शामिल है. यही कारण है कि सपा चाहती है कि MVA गठबंधन में उसकी भी भागीदारी हो. क्योंकि सपा की महाराष्ट्र की कुछ विधानसभा सीटों पर अच्छी पकड़ मानी जाती है. प्रदेश में बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता सपा को वोट करते हैं. लेकिन MVA लगातार महाराष्ट्र में सपा की मौजूदी को नकार रहा है. MVA की किसी भी बैठक में सपा को न बुलाए जाने से महाराष्ट्र सपा अध्यक्ष अबू आसिम आज़मी ने नाराजगी भी जाहिर की थी.
पहले भी कांग्रेस ने सपा को नकारा
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में गठबंधन से अपनी हिस्सेदारी मांग रहे अखिलेश यादव को पहले भी धोखा मिल चुका है. उन्होंने 2023 में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से कुछ सीटों की डिमांड की थी. लेकिन मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने सपा के वजूद को नकार दिया. जिसके बाद सपा ने अकेले ही मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ा. अखिलेश यादव ने प्रदेश में कई रैलियां भी की. हालांकि सपा कोई सीट जीत पाने में भले ही कामयाब नहीं रही हो, लेकिन कई सीटों पर कांग्रेस का गणित बिगाड़ जरूर दिया.
हाल ही में हरियाणा में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में भी सपा ने कांग्रेस से कुछ सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग की थी. लेकिन बात नहीं बन पाई. अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी गठबंधन के समक्ष मुस्लिम बाहुल्य 8 से 10 सीटों पर अपनी पार्टी के प्रत्याशियों को उतारने की मांग की है. माना जा रहा है कि यदि MVA सपा को गठबंधन में भागीदारी नहीं देता है तो भी समाजवादी पार्टी महाराष्ट्र में विधानसभा का चुनाव अपने दम पर लड़ेगी.
ऐसे कयासों को मजबूती इसलिए भी मिल रही है क्योंकि आज शुक्रवार (18 अक्टूबर) को अखिलेश यादव महाराष्ट्र के दो दिवसीय दौरे पर पहुंच रहे हैं. अखिलेश का यह दौरा विधानसभा चुनाव को लेकर है. वह महाराष्ट्र के मालेगांव और धुले में रैलियों को भी संबोधित करेंगे. जबकि MVA में उनकी पार्टी की हिस्सेदारी होगी या नहीं होगी यह अभी तक तय नहीं हो पाया है.
क्यों सता रहा सपा को डर?
सपा को डर सता रहा है कि कहीं महाराष्ट्र में उसे MVA से धाोखा न मिल जाए. ऐसे में सपा प्रमुख अखिलेश यादव व महाराष्ट्र सपा प्रदेश अध्यक्ष अबू आसिम आज़मी अपने स्तर से विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जुटे हुए हैं. 3 माह पूर्व संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के दौरान भी इंडी गठबंधन के दलों के बीच खींचतान देखने को मिली थी. जो दल जिस प्रदेश में मजबूत था, वह इंडी गठबंधन के किसी अन्य दल के साथ अपने प्रदेश में गठबंधन करने से कतराता रहा.
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस मजबूत है. आम चुनाव में यहां ममता ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से मनाकर दिया. इंडी गठबंधन में होने के बाद भी टीएमसी और कांग्रेस दोनों दलों ने बंगाल में एक दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी उतारे थे. कुछ यही स्थिति पंजाब की भी रही थी, यहां सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से इनकार करते हुए अलग-अलग लोकसभा का चुनाव लड़ा था.
मध्य प्रदेश और हरियाणा में कांग्रेस की स्थिति मजबूत मानी जाती है. यहां सपा के लाखों प्रयासों के बाद भी कांग्रेस ने एक भी विधानसभा की सीट उसके लिए नहीं छोड़ी. इस से यह स्पष्ट होता है कि इंडी गठबंधन का जो दल जहां मजबूत स्थिति में है, वह वहां किसी कमजोर पार्टी के साथ गठबंधन करने से परहेज करता है. इसका प्रमुख कारण यह भी है कि राजनीति में कोई किसी का सगा या दुश्मन नहीं होता. इस स्थिति में जो दल जहां मजबूत है, वह नहीं चाहता की भविष्य में किसी अन्य दल के लिए उसके गढ़ में सियासी जमीन तैयार हो.