लखनऊ: दशहरा का पर्व आते ही देशभर में रामलीला का दौर प्रारंभ हो जाता है. आधुनिक युग में भले ही मोबाइल, टीवी, रेडिया जैसे अनेक मनोरंजन के साधन हों, लेकिन एक दौरा ऐसा भी था जब लोगों के पास गिने-चुने मनोरंजन के साथ हुआ करते थे. इन्हीं साधनों में से एक थी रामलीला.
दरअसल, भारत में रामलीला का दौर सदियों से चला आ रहा है, जो आज भी बरकरार है. भारत में ऐसी कई रामलीला कमेटियां हैं, जो दशकों पहले बनीं थीं और आज भी अस्तित्व में हैं. इन्हीं में से एक है लखनऊ के चौक की रामलीला कमेटी. इस रामलीला कमेटी का गठन 1937 में हुआ था. कमेटी द्वारा आयोजित रामलीला में अभिनय करने वाले कलाकार सोने-चांदी के आभूषण और अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग करते हैं. जिसके चलते यहां की रामलीला अपने अद्वितीय वेशभूषा के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रहती है.
90 साल पुराना है चौक की रामलीला का इतिहास
चौक रामलीला कमेटी का इतिहास 9 दशक पुराना है. इस कमेटी का गठन आजादी से 10 वर्ष पूर्व यानी 1937 में हुआ था. यहां रामलीला दशहरा के दिने से प्रारंभ होती है. चौक में रामलीला का प्रारंभ स्थानीय सोने-चांदी के एक व्यापारी ने किया था. उन्होंने ही यहां अभिनय करने वाले कलाकारों के लिए सोने-चांदी के आभूषणों और अस्त्र-शस्त्रों को बनवाया था. जिनका प्रयोग आज भी किया जाता है.
हनुमान जी उठाते हैं 5 किलो चांदी से बनी गदा
रामलीला के दौरान मंचन करने वाले कलाकार सोने चांदी के आभूषणों का प्रयोग करते हैं. राम और लक्ष्मण का धनुष और हनुमान जी की गदा चांदी से बनी है. गदा का वजन 5 किलो है. साथ ही राम-लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि का किरदार निभाने वाले कलाकार मुकुट, कुंडल व जो अन्य आभूषण पहनते हैं यह चांदी से बने हुए हैं.
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लॉकर में रखे जाते हैं आभूषण, होती है पूजा
रामलील के दौरान जिन सोने-चांदी के अस्त्र-शस्त्रों और आभूषणों का प्रयोग होता है, वह लॉकर में रखे जाते हैं. लॉकर में रखे जाने से पहले इनकी पूजा की जाती है. साथ ही आभूषण चमचमाते रहें, इसलिए इनकी साफ-सफाई भी होती है.