प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चित्रकूट की तुलसी पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग खारिज करते हुए अपीलकर्ताओं को झटका दिया है. ये मांग उनके खिलाफ अनुसूचित जाति समुदाय के लिए आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में की गई थी. जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिका में उठाई गई मांग को बिना ठोस आधार का बताया. जस्टिस सौरभ ने कहा कि अपील के आधार पर यह स्पष्ट है कि अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, IT अधिनियम की धारा 67 और IPC के अन्य प्रावधानों के तहत कोई विशेष अपराध नहीं बनता.
कहा था ‘मरे मुलायम-कांशीराम, प्रेम से बोलो जय श्री राम’
कोर्ट ने यह आदेश प्रयागराज निवासी याचिकाकर्ता प्रकाश चंद्र की याचिका को खारिज करते हुए दिया है. बता दें, जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने हाल ही में बिहार में आयोजित एक राम कथा के दौरान कहा था, “जो भगवान राम के नाम का जयकारा नहीं लगाता, वह एक विशेष जाति का हैं” इसके साथ ही, उन्होंने समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के बारे में भी टिप्पणी की थी, जिसमें उन्होंने कहा था, “मरे मुलायम-कांशीराम, प्रेम से बोलो जय श्री राम.” इन बयानों को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया हुई, जिसके चलते प्रकाश चंद्र ने जिला अदालत में याचिका दायर की थी.
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट खारिज कर चुका था याचिका
याचिककर्ता ने इससे पहले डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के समक्ष CrPC की धारा 156(3) के तहत FIR कराने का निर्देश देने की मांग की थी, लेकिन 15 फरवरी 2024 को SC/ST मामलों के विशेष जज ने इस आवेदन को सुनवाई योग्य मानने से इनकार कर दिया, जिसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की गई थी.
‘जिन शब्दों को आपत्तिजनक मानने का प्रयास किया गया, वे किसी विशेष व्यक्ति को उकसाने के लिए नहीं थे’
जिसके बाद हाई कोर्ट ने इसपर जगद्गुरु रामभद्राचार्य से जवाब मांगा. रामभद्राचार्य की ओर से सीनियर एडवोकेट एमसी चतुर्वेदी और विनीत संकल्प ने दलील दी कि ट्रायल कोर्ट का आदेश उचित था और जिन शब्दों को आपत्तिजनक मानने का प्रयास किया गया, वे किसी विशेष व्यक्ति को उकसाने के लिए नहीं थे. राज्य सरकार की ओर से भी इस अपील का विरोध किया गया, यह कहते हुए कि ट्रायल कोर्ट का आदेश पूरी तरह से सही है. उन्होंने बताया कि उनका उद्देश्य सभी को भगवान राम के नाम का जयकारा लगाने के लिए प्रेरित करना है. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, हाई कोर्ट ने 4 अक्टूबर को अपील खारिज कर दी.