लखनऊ; आज 3 अक्टूबर गुरुवार से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो गए हैं जो 11 अक्टूबर को समाप्त होंगे. जिसके बाद 12 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा. आज कलश स्थापना के साथ नवरात्रि की शुरुआत होगी. लगातार 9 दिनों तक भक्त मां दुर्गा के अगल-अलग स्वरूपों की पूजा करेंगे. नवरात्रि पर्व को देखते हुए दुर्गा मंदिरों में भक्तों का ताता लगा हुआ है. इस कड़ी में हम आप को लखनऊ के प्राचीन देवी मंदिरों के बारे में बताने वाले हैं. जिनका इतिहास अति प्राचीन है.
1- चंद्रिका देवी मंदिर
लखनऊ के बख्शी का तालाब तहसील क्षेत्र के कठवारा गांव स्थित चंद्रिका देवी मंदिर अति प्राचीन तीर्थ स्थल है. यहां मां के दर्शन करने के लिए प्रतिदिन भक्तों का ताता लगता है. नवरात्रि के अवसर पर तो भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है. मान्यताओं के अनुसार, चंद्रिका देवी मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. स्कंद पुराण के अनुसार घटोत्कक्ष के पुत्र बर्बरीक ने द्वापरकाल में गोमती के समीप स्थित चंद्रिका देवी मंदिर के किनार महीसागर संगम में घोर तप किया था. जिससे मां ने प्रसंन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया था. इसके अलावा यह भी मान्यता है कि वनवास के दौरान यहां पांड़व आए थे और कई दिनों तक यहां रहकर मां की पूजा की थी. जिससे उन्हें तमाम शक्तियां प्राप्त हुईं थीं.
2- मरी माता मंदिर
लखनऊ के अर्जुनगंज इलाके में मरी माता का मंदिर स्थित है. इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है. एक पुल पर बने इस मंदिर में प्रतिदिन हजारों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं. विशेषकर नवरात्रि में यहां भक्तों का उत्साह देखत ही बनता है. यहां आने वाले भक्त अपनी मनौती पूरी होने पर मां को चुनरी और घंटी चढ़ाते हैं. इस मंदिर के आसपास आप को दूर-दूर तक लाखों घंटियां बंधी हुईं दिख जाएंगी. जो इस मंदिर के महत्वा को दर्शाती हैं.
मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर का इतिहास प्राचीन है. यहां मूर्ति के स्थान पर सिर्फ एक ताख बना हुआ है. जिसमें हमेशा दीया जलता रहता है. इसी दीप को मां का स्वरूप माना जाता है. स्थानीय लोग बताते हैं कि करीब 150 वर्ष पूर्व अर्जुनगंज गांव में रहने वाले एक व्यक्ति के सपने में मां आईं थीं और स्थान बताते हुए वहां एक ताख का निर्माण कराकर पूजा प्रारंभ करने की बात कही थी. पूजा प्रारंभ होने के बाद यहां भक्तों के आने का सिलसिला बढ़ता चला गया. यह मंदिर लखनऊ-सुल्तानपुर हाइवे पर स्थित है.
3- बड़ी काली मंदिर
लखनऊ का बड़ी काली मंदिर करीब 2 हजार वर्ष पुराना है. इस मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य जी ने की थी. यहां वैसे तो साल भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है. लेकिन नवरात्रि के 9 दिनों तक यहां भक्तों की लंबी लाइन देखा जा सकता है. मान्यता है कि बड़ी काली मंदिर में मां के दर्शन-पूजन करने से भक्तों की सभी मनौती पूरी होती हैं.
यहां मां काली की पूजा मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु के रूप में होती है. इसके पीछे की भी लंबी कहानी है. स्थानीय बताते हैं कि यहां मुगलों ने बड़ी काली मंदिर को लूटने और तोड़ने के इरादे से हमला किया था. मां की मूर्ति को मुगल आक्रांत न तोड़ पाएं, इसलिए पुजारी ने मां काली की मूर्ति को पास के ही एक कुएं में डाल दिया.
मुगल मंदिर को तोड़कर और लूटकर चले गए. लेकिन मां की मूर्ति कुएं में ही पड़ी रही. जिसके बाद मां उसी पुजारी के सपने में आईं और मूर्ति को निकालने को कहा. हालांकि, जब मूर्ति को निकालने के लिए लोग कुए के अंदर पहुंचे तो उन्हें मां काली के स्थान पर लक्ष्मी और विष्णु की 2 मूर्तियां मिलीं. जिसके बाद उन्हीं मूर्तियों को मंदिर में स्थापित कर मां काली के रूप में पूजा जाने लगा.
4- संदोहन देवी मंदिर
राजधानी लखनऊ के चौपटिया चौराहे पर स्थिति संदोहन देवी मंदिर का इतिहास प्राचीन है. संदोहन देवी को लखनऊ की पांच देवियों में एक माना जाता है. इस मंदिर के पास एक सरोवर स्थित है. इस सरोवर के आसपास मौर्यकालीन मूर्तियां भी प्राप्त हुईं है. इस आधार पर इस मंदिर को मध्य कालीन भारत के इतिहास से भी जोड़ा जाता है. संदोहन देवी मंदिर में स्थापित मां की प्रतिमा दर्शनीय है. साथ ही मां का भव्य मंदिर भी बना हुआ है.