आंध्र प्रदेश के तिरुमला पहाड़ी पर स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर में बंटने वाला लड्डू प्रसादम इन दिनों सुर्खियों में है. प्रदेश की टीडीपी सरकार ने दावा किया है कि ‘लड्डू प्रसादम’ बनाने वाले घी में पशुओं की चर्बी और मछली का तेल मिला है. टीडीपी ने पूर्व की YSR कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाया है कि इस घी की आपूर्ति उन्हीं की सरकार के दौरान की गई. घी में अशुद्धियों की खबर से पूरे देश में हलचल है. क्योंकि देश के कोने-कोने से श्रद्धालु तिरुपति बालाजी के दर्शन करने पहुंचते हैं. वहां प्रसाद के रूप में बंटने वाले लड्डू प्रसादम् को ग्रहण करते हैं.
वैसे तो तिरुपति बालाजी मंदिर में लड्डूओं का भोग लगाने और फिर इसे प्रसाद के रूप में बांटने की परंपरा 18वीं सदी में प्रारंभ हुई. लेकिन भगवान तिरुपति को लड्डूओं का भोग लगाने के चलन द्वापरयुग से चला आ रहा है. इसके पीछे कई किंवदंतियां भी प्रचलित हैं. भगवान वेंकटेश, वेंकटेश्वर, तिरुपति स्वामी और तिरुपति बालाजी यह तीनों नाम एक ही हैं. अपनी श्रद्धा के अनुसार भक्त भगवान वेंकटेश को पुकारते हैं.
तिरुपति मंदिर में मिलने वाला लड्डू प्रसाद साक्षात भगवान तिरुपति का आशीर्वाद माना जाता है. यह लड्डू खाने में अति स्वादिष्ट होता है. पंचमेवा जैसे की बेसन, घी, चीनी, ड्राई फ्रूट्स (काजू, किशमिश, इलायची आदि) को मिलाकर बनाया जाता है. लड्डू प्रसादम् के विशिष्ट स्वाद के चलते इसे 2009 में GI ( Geographical Indication) टैग मिला था. लड्डू प्रसादम् में मंदिर परिसर में ही बनी रसोई में पुजारियों द्वारा बनाया जाता है. जिसे बनाने के प्रक्रिया को ‘पोटू’ कहा जात है.
तिरुपति बालाजी लड्डू भोग लगाने के पीछे की मान्यता
तिरुपति बालाजी को लड्डूओं का भोग लगाए जाने की परंपरा अति प्राचीन है. इसके पीछे कई किंवदंतियां भी प्रचलित हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार माता भगवान तिरुपति बालाजी (विष्णु भगवान) और पद्मावती ( माता लक्ष्मी) के बीच इस बात तो लेकर विवाद हो गया कि दोनों में से भक्त किसे अधिक प्रसाद चढ़ाते हैं. भगवान बालाजी का कहना था कि उन्हें भक्त अधिक भोग लगाते हैं. जबकि माता लक्ष्मी का कहना था कि क्योंकि वह धन की देवी हैं इस अगर भक्तों के पास धन नहीं होगा तो वह कैसे प्रसाद चढ़ाते.
इसी बात तो परखने के लिए भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी वेष बदलकर धरती लोक पर आए. इस दौरान उन्होंने सबसे पहले एक धनवान भक्त के घर पहुंच कर भोजन करने की इच्छा जताई. धनवान भक्त नाना प्रकार के व्यजनों से उनका सत्कार किया. लेकिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु का उस भोजन से पेट नहीं भरा. तभी वह अपने एक एक निर्धन भक्त के घर पहुंचे. निर्धन भक्त ने अपने घर में बचे आटे और मेवा आदि को मिलाकर लड्डू बनाए. जिसमें बाद उनसे संत वेष में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को लड्डू खिलाए. जिसके खाते ही भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को अपार आनंद की अनुभूति हुई और उनकी क्षुधा शांत हो गई. जिससे बाद से उन्होंने भक्त को अपने असली स्वरूप के दर्शन कराए. मान्यता है कि इसी के बाद से ही भगवान तिरुपति को लड्डूओं का भोग लगाने का चलन प्रारंभ हुआ.
माता यशोदा और नंदबाबा ने लगाया था लड्डओं का भोग
मान्यता है कि माता यशोदा और नंद बाना ने एक बार अपने घर पर भगवान विष्षु का पूजन किया. तब उन्होंने भोग लगाने के लिए लड्डू बनवाए और आंख बंदकर भगवान विष्णु का अह्वान किया. जब उन्होंने आंखें खोलीं तो देखा थाली में रखे लड्डूओं को कान्हा खा रहे हैं. यह देखकर माता यशोदा और नंद बाबा हंसने लगे. तभी उन्होंने दूसरी थाली में रखे लड्डूओं का भगवान विष्णु को भोग लगाया. फिर देखा की कान्हा उन लड्डूओं को खा रहे हैं.
जब बार-बार ऐसा हुआ तो यशोदा माता और नंद बाबा ने कान्हा से कहा यह लड्डू भगवान के लिए हैं. तू हट जा कान्हा बाद में खाना. तभी कान्हा ने कहा कि मैया आप ही तो बार-बार लड्डूओं को खाने के लिए बुला रही हैं. लड्डू कान्हा को इतने पसंद आए कि उन्होंने नंद बाबा और यशोदा माता को अपनी विशाल स्वरूप का दर्शन दिया. मान्यता है कि इसी के बाद से तिरुपति बालाजी जो भगवान विष्णु के स्वरूप हैं, उन्हें लड्डूओं का भोग लगाने की परंपरा प्रारंभ हुई.
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माता लक्ष्मी ने तिरुपति को स्वयं लगाया था लड्डूओं का भोग
प्रचलित प्राचीन कथा के अनुसार, जब तिरुमला पहाड़ी पर भगवान वेंकटेश्वर स्वामी बालाजी की मूर्ति स्थापित की जा रही थी, तब पुजारी इस बात को लेकर चिंतिंत थे कि उन्हें क्या भोग लगाया जाए. काफी चिंतन-मनन करने के पश्चात भी पुजारियों को कोई उपाय नहीं सूझा. तभी वहां पर एक वृद्ध महिला आईं और उन्होंने भगवान तिरुपति की पूजा करने और भोग लगाने की इच्छा जाहिर की. वृद्ध महिला ने पूजन कर तिरुपति को लड्डूओं का भोग लगाया. साथ ही वहां मौजूद सभी पुजारियों को वह लड्डू प्रसाद के रूप में भी बांटा. पुजारियों ने जब लड्डू प्रसाद को ग्रहण किया, तो वह उनके स्वाद से आनंदित हो उठे. तभी उन्होंने वृद्ध महिला की खोज प्रारंभ की. लेकिन वह अंतरध्यान हो गईं. मान्यता है कि वह स्वयं लक्ष्मी माता थी. जो यह बताने आईं थी कि वेंकटेश्वर स्वामी बालाजी लड्डूओं का भोग लगाया जाए.